लखनऊ। उर्दू शायरी में कसीदा की विद्या बहुत प्राचीन है। पुराने व नए शायरों ने अपने-अपने तौर पर कसीदे लिखें और उसका विकास किया। यह विद्या नवाबों, राजाओं के दरबारों से संबंधित रही है। दक्षिण के प्रसिद्ध शायरों में नुसरती, गवासी, शाही, मुल्ला वजही, शाह अशरफ, बयानानी और वली दखिनी आदि प्रमुख हैं। लेकिन कसीदे को विकसित करने में ज़ौक़, गालिब, मीर और सौदा आदि की प्रमुख भूमिका रही है। लेकिन आज बहुत कम शायर इस विद्या पर रचनात्मक कार्य कर रहे हैं। जिनमें एक अहम नाम जमाल हल्लौरी का है।

यह बातें मौलाना कल्बे जवाद नकवी ने यहां जमाल हल्लौरी के काव्य संकलन ‘‘ सहीफ-ए-कसाएद’’ का विमोचन करते हुए कहीं। मौलाना नकवी ने इसे संकलित करने के लिए उर्दू पत्रिका नया दौर के पूर्व संपादक डा0 सैय्यद वज़ाहत हुसैन रिज़वी की साहित्यिक सेवाओ की सराहना करते हुए उनकी प्रशंसा की। मौलाना ने कहा कि इस विद्या पर शोध कार्य करने वालों के लिए भी यह संकलन बहुत लाभकारी साबित होगा।

इस अवसर पर डा0 वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने जमाल हल्लौरी के व्यक्त्तिव और साहित्यिक सेवाओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि अभी उनकी कई कृतियों का प्रकाशन होना बाकी है। जल्ही उन्हें प्रकाशित कराया जाएगा। इस मौके पर सज्जादा नशीं असलम बकायी, मौलाना कमरूल हसन रिजवी समेत अन्य विशिष्ट जन मौजूद थे।