‘हमारी लड़ाई को किसी पार्टी विशेष के संदर्भ में मत देखें’
शिवपाल ने बताई अलग पार्टी बनाने की मजबूरी
नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी में लंबे समय तक हाशिये पर रहने के बाद हाल में समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का गठन करने वाले शिवपाल सिंह यादव ने सोमवार को अपना दर्द बयां करते हुए पार्टी बनाने की वजह बताई. शिवपाल ने कहा कि सपा में मुलायम और अपने साथ हुए ‘‘अपमान’’ के बाद उन्हें मजबूरन अलग पार्टी बनानी पड़ी. उन्होंने ‘नेताजी’ यानी अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद प्राप्त होने का भी दावा किया. अगला लोकसभा चुनाव लड़ने की अपनी पार्टी की तैयारियों पर शिवपाल ने बताया, "हम समान विचारधारा वाली छोटी पार्टियों के साथ मिलकर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे."
शिवपाल से जब पूछा गया कि उत्तर प्रदेश में पहले से कई बड़ी पार्टियां होने के कारण सेक्युलर मोर्चा चुनावी रेस में अपनी जगह कैसे मजबूत करेगा, इस पर उन्होंने कहा, ‘‘हमारी लड़ाई को किसी गठबंधन या पार्टी विशेष के संदर्भ में मत देखें.
अगर आपकी बात मानें तो ऐसे में तो भारत में सिर्फ दो दल होने चाहिए. ’’ चुनाव नजदीक आते-आते आप किसी अन्य पार्टी में विलय तो नहीं कर लेंगे, इस सवाल पर शिवपाल ने कहा, ‘‘नहीं, इसका तो सवाल ही नहीं उठता. अगर हमें किसी अन्य दल में जाना होता तो न हमारे पास प्रस्तावों की कमी थी और न ही अवसरों की. ’’
क्या इस अलगाव का फायदा किसी तीसरे पक्ष को मिलेगा, इस पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल ने कहा, ‘‘सपा को एकजुट रखने के लिए मैं जो कुछ कर सकता था, मैंने किया. सपा अपने मूल सिद्धांतों से भटक चुकी है. लाखों प्रतिबद्ध मेहनती समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपमानित एवं उपेक्षित किया गया.
नेताजी का और हमारा भी समय-समय पर अपमान किया गया. सपा को उसकी मूल विचारधारा की ओर लौटाने के मेरे सारे प्रयास व्यर्थ साबित हुए. ’’ उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक तीसरे पक्ष को लाभ का सवाल है, हम इस पर नहीं सोच रहे. सोचना भी नहीं चाहिए. मुझे सिर्फ इतना पता है कि आज उत्तर प्रदेश की राजनीति में सबसे सशक्त विकल्प और पक्ष सेक्युलर मोर्चा है और हम उसे जनता के बीच लेकर जा रहे हैं. ’’
शिवपाल ने कहा कि सेक्युलर मोर्चा के गठन का निर्णय बहुत सोच-समझकर, सभी सेक्युलर समाजवादी विचारधारा के अनुभवी लोगों से विचार-विमर्श के बाद लिया गया है. उन्होंने कहा कि अपनी मूल विचारधारा एवं सिद्धांतों से भटकी सपा में रहकर सिद्धांतों से समझौता करना अब संभव नहीं है.