पूरी तरह खत्म नहीं हुआ IPC 377
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को एकमत से IPC की धारा 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया, जिसके तहत परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध था. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे में रखने वाली धारा 377 के हिस्से को तर्कहीन, सरासर गलत मनमाना. कोर्ट ने कहा कि इसका बचाव नहीं किया जा सकता है.
हालांकि शीर्ष अदालत ने अपनी व्यवस्था में कहा कि धारा 377 में प्रदत्त पशुओं ओर बच्चों से संबंधित अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रावधान यथावत रहेंगे. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पशुओं और बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन क्रिया से संबंधित धारा 377 का हिस्सा पूर्ववर्त लागू रहेगा. न्यायालय ने कहा कि पशुओं के साथ किसी तरह की यौन क्रिया भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत दंडनीय अपराध बनी रहेगी.
यानि सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 अंतर्गत साफ किया है कि परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध नहीं है, लेकिन पशुओं ओर बच्चों से संबंधित अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रावधान बने रहेंगे और अपराधियों को दंडित किया जाएगा.
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समलैंगिकता को अपराध बताया गया है. आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ यौन संबंध बनाता है, तो उसे इस अपराध के लिए उसे 10 साल की सजा या अधिकतम आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा. साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा. यह संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है और गैर जमानती है.