नई दिल्ली: लॉ कमिशन ने उल्लेख करते हुए कहा है कि लोकतंत्र में ”एक ही किताब से गाना देशभक्ति का बेंचमार्क नहीं है।” वहीं लोगों को भी आजादी है कि वह जिस तरह से चाहें अपने देश के प्रति अपना प्रेम दिखा सकते हैं। लॉ कमिशन ने कहा है कि किसी भी ऐसे शख्स पर देशद्रोह का आरोप नहीं लगाया जा सकता है जिसके विचार सरकार की वर्तमान नीतियों से मेल न खाते हों। भारतीय दंड विधान के तहत आने वाले राष्ट्रद्रोह कानून (124ए) पर लाए गए सुझाव पत्र में कई मुद्दों को रखा गया, जिन पर विस्तृत चर्चा की जरूरत है। रिटायर्ड जस्टिस बीएस चौहान के नेतृत्व वाले लॉ कमिशन ने कहा कि सख्त राष्ट्रद्रोह कानून को सिर्फ उन्हीं मामलों में लगाया जाना चाहिए, जहां किसी काम को करने का उद्देश्य कानून व्यवस्था को बिगाड़ना या फिर हिंसा या अन्य अवैध रास्तों से सरकार को उखाड़ फेंकना हो”

पैनल ने अपने पेपर में कहा,” कमिशन को उम्मीद है कि न्याय क्षेत्र के विद्वानों, कानून निर्माताओं, सरकार और गैर सरकारी एजेंसियों, एकेडेमिक, विद्यार्थी और सबसे ऊपर आम जनता के बीच स्वस्थ बहस होनी चाहिए। ताकि जन हितकारी सुधार किया जा सके।” पैनल ने बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की पुरजोर वकालत की।

पैनल ने कहा कि लोकतंत्र में एक ही किताब से गाना देशभक्ति का बेंचमार्क नहीं है। वहीं लोगों को भी आजादी है कि वह जिस तरह से चाहें अपने देश के प्रति अपना प्रेम दिखा सकते हैं। सरकार की नीतियों में मौजूदा ​कमियों की ओर इशारा करते हुए पैनल ने कहा कि ऐसा करने पर कोई भी स्वस्थ बहस और आलोचना में शामिल हो सकता है। ऐसी अभिव्यक्ति करने में इस्तेमाल हावभाव कई बार कठोर और कुछ लोगों को अप्रिय हो सकते हैं। लेकिन ऐसी चीजों को देशद्रोह नहीं कहा जा सकता है।

पैनल ने कहा,” अगर देश के लोगों को सकारात्मक आलोचना का अधिकार नहीं होगा तो आजादी से पहले और बाद के वक्त में बहुत थोड़ा ही फर्क रह जाएगा। किसी के द्वारा अपने इतिहास की आलोचना का अधिकार और किसी बात का विरोध करने का अधिकार बोलने के अधिकार के तहत संरक्षित किए गए हैं। ये देश की अखंडता को बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी हैं, इसका बोलने के अधिकार को नियंत्रित करने के औजार के रूप में दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है।