भाषाएं सरहदों की सीमा को भी समाप्त करती हैं: राम नाईक
राज्यपाल ने नूर अमरोहवी के गज़ल संग्रह ‘दुआएं काम आती हैं’ का विमोचन किया
लखनऊः उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम में अमेरिका में रह रहे प्रवासी भारतीय एवं सुप्रसिद्ध शायर नूर अमरोहवी के द्विभाषीय गज़ल संग्रह ‘दुआएं काम आती हैं‘ का लोकार्पण किया। गज़ल संग्रह को श्री अमरोहवी ने अपने माता-पिता को समर्पित किया है। इस अवसर पर पूर्व विधान परिषद सदस्य सिराज मेंहदी, राज्यपाल के प्रमुख सचिव हेमन्त राव, अनीस अंसारी, नासिर अमरोहवी, असलम बकाई, सर्वेश अस्थाना, नसीम निकहत , चरन सिंह बशर, हसन काजमी, शबीना अदीब व अन्य शायर तथा साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।
इस अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को याद कर श्रद्धांजलि भी अर्पित की गई। राज्यपाल ने स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को ‘भाषाप्रभु’ बताते हुए कहा कि आज उनका अस्थि क्लश लखनऊ आ रहा है। उन्होंने कहा कि अटल जी देश की राजनीति में अद्वितीय एवं अप्रतिम थे जिन्होंने देश के लिये स्वयं को समर्पित कर दिया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे वासिफ फारूखी ने एक शेर ‘मौत उसकी है करे जिसका जमाना अफसोस, यूं तो जमाने में सभी आये हैं मरने के लिये’ के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि की।
राज्यपाल ने विमोचन के बाद अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लोग दीवारे खड़ी करते हैं, पर भाषाएं सरहदों की सीमा को भी समाप्त करती हैं। संविधान में उदृत सभी भाषाओं को भारतीय भाषा का दर्जा प्राप्त है। संस्कृत सभी भाषाओं की माँ है। हिन्दी की अपनी बहुत बड़ी ताकत है। गत दिनों माॅरीशस में हुए हिन्दी सम्मेलन में बड़ी संख्या में हिन्दी भाषियों का उपस्थित होना इस बात का प्रमाण है। हिन्दी के बाद सबसे ज्यादा उर्दू बोली जाती है। हिन्दी और उर्दू भाषा में संग्रह वास्तव में हिन्दी उर्दू का मिलन और गंगा-जमुना के संगम जैसा भाव देता है। नूर अमरोहवी ने अमेरिका में रहते हुए अपने संग्रह में दोनों भाषाओं को बराबर न्याय देने का सराहनीय प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि भाषाएं लोगों को एक-दूसरे से जोड़ती हैं।
श्री नाईक ने कहा कि गजल संग्रह का शीर्षक अत्यन्त दिलचस्प है क्योंकि ‘दुआएं’ वास्तव में काम आती हैं। संग्रह को माता-पिता को समर्पित करने का मतलब है कि यह पूरी दुनिया को समर्पित है। जीवन में माँ-बाप बहुत बड़ी नियामत है। पुस्तक का विमोचन आज यहां होने से माता-पिता का महत्व अमेरिका से लेकर उत्तर प्रदेश तक के लोगों को मालूम चलेगा। राज्यपाल ने बताया कि महाराष्ट्र में 80 वर्ष पुराने दैनिक ‘सकाल’ में प्रकाशित मराठी भाषा में उनके लेखों के संग्रह को पुस्तक का रूप देकर ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ का नाम दिया गया है। मूल पुस्तक का अब तक हिन्दी, उर्दू, गुजराती, अंग्रेजी और संस्कृत में अनुवाद किया जा चुका है। सिंधी, अरबी, फारसी का अनुवाद भी शीघ्र पूरा होगा। यह सुखद संयोग है कि श्री अमरोहवी की पुस्तक का विमोचन लखनऊ में हो रहा है और मेरी पुस्तक के जर्मन अनुवाद का विमोचन लंदन और बर्लिन में प्रस्तावित है।
राज्यपाल ने कार्यक्रम में आये अतिथियों को अपनी पुस्तक ‘चरैवेति!चरैवेति!!’ की उर्दू प्रति तथा अपने चैथे कार्यवृत्त ‘राजभवन में राम नाईक 2017-18’ की प्रति भेंट की। अमरोहा से आये नासिर अमरोहवी ने राज्यपाल को अपनी पुस्तक ‘तारीख-ए-अमरोहा’ भेंट की।