नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को कहा कि भ्रष्टाचार – निरोधक कानून में सशोधन से यह सुनिश्चित हुआ है कि कि भ्रष्ट अधिकारी को पकड़ने की कार्रवाई में जांच एजेंसियां के हाथों अब ईमानदार अधिकारियों को प्रताड़ना नहीं झेलनी पड़ेगी. भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2018 को संसद ने इसी सप्ताह पारित किया है. इस विधेयक में पहली बार रिश्वत देने वाले को दंडित करने के साथ ही उसके लिये अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान किया गया है.

जेटली ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि इस संशोधन के जरिए इस 30 साल से भी अधिक पुराने कानून में एक बुनियादी गडबड़ी को ठीक किया गया है. यह कानून उदारीकरण से भी पहले बनाया गया था. तब इस कानून को बनाते समय यह अंदाजा नहीं लगाया गया था कि इससे ईमानदारी के साथ फैसला करने वालों के समक्ष भी किसी तरह का जोखिम हो सकता है.

पुराने कानून में भ्रष्टाचार की व्यापक परिभाषा और उसकी कमजोर शब्दावली के चलते जांचकर्ताओं को अपनी पेशेवर विशेषज्ञता छोड़कर केवल उस नियम पर चलने को मजबूर कर दिया जिसमें कहा जाता है कि ‘जहां कहीं भी संदेह हो उसके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर दो.’

अरुण जेटली ने कहा,'किसी ईमानदार बैंक प्रबंधन द्वारा यदि नियमों का पालन करते हुए कोई कर्ज दिया गया और बाद में कर्ज लेने वाला इसकी वापसी करने में असफल रहता है तो उस कर्ज को लेकर सवाल खड़े किए जाते हैं और समूची प्रक्रिया को जांच एजेंसी के हवाले कर दिया जाता है.'

केन्द्रीय मंत्री ने कहा कई ईमानदार लोगों को इस प्रक्रिया में प्रताडि़त किया जाता है, हालांकि उन्हें कभी भी दोषी करार नहीं दिया गया. इस सब के चलते नागरिक सेवा में लगे कर्मचारियों के मन में यह सोच बैठ गई कि खुद फैसला करने के बजाय निर्णय को अगले व्यक्ति पर टाल दो.

अरुण जेटली ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2018 में कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं जिसमें भ्रष्टाचार के मामलों की तेजी से सुनवाई होगी. इसके साथ ही इसमें अधिकारियों को उनके खिलाफ दुर्भावना से की गई शिकायतों से बचाव के उपाय किए गए हैं. यहां तक कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी उनका बचाव हो सकेगा.

रिश्वत लेने वालों के लिये विधेयक में उनकी सजा को जुर्माने के साथ ही न्यूनतम तीन साल से बढ़ाकर सात साल तक बढ़ाने का प्रावधान कर दिया गया है. विधेयक के मुताबिक रिश्वत देने वाले को भी सात साल तक की कारावास की सजा और जुर्माना तथा दोनों ही दंड दिये जा सकते हैं. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के मामले में रिश्वत देने वाले को अब तक किसी भी घरेलू कानून में शामिल नहीं किया गया है.