नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि वह RTI यानी सूचना के अधिकार में बदलाव करना चाहती है. राहुल गांधी के मुताबिक अगर RTI में सरकार के प्रस्तावित बदलाव को मंजूरी दी गई तो RTI बेकार हो जाएगा. RTI में बदलाव का प्रस्तावित विधेयक सभी सांसदों को दिया गया है. राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर ट्विटर के जरिए बीजेपी पर हमला भी किया है. राहुल गांधी का आरोप है कि बीजेपी सच छुपाना चाहती है और जनता को जवाब नहीं देना चाहती है इसलिए वो RTI में बदलाव करना चाहती है.

भारत सरकार सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) में कुछ संशोधन करने वाली है. संशोधन में सबसे अहम है सूचना आयुक्तों (मुख्य सूचना आयुक्त भी शामिल है) का कार्यकाल (केंद्रीय और प्रदेश स्तरों पर), तनख्वाह और सेवा काल निर्धारित करना.

मौजूदा कानून में अधिकतम आयु सीमा 65 साल के साथ सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 साल निर्धारित है. संशोधित कानून में अब केंद्र सरकार तय करेगी कि किसी आयुक्त का कार्यकाल कितने वर्ष का हो.

फाइनेंसियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और तनख्वाह का अधिकार अपने पास रख सकता है लेकिन इससे आयुक्तों पर सियासी दबाव बढ़ने की संभावना है जिससे आयोग के अधिकारों का हनन आसान हो जाएगा.

केंद्र सरकार अगर कार्यकाल तय करने लगे तो 'असुविधाजनक आदेश' पारित करने पर आयुक्तों के बर्खास्त होने की आशंका बढ़ जाएगी. केंद्रीय सूचना आयोग के 10 शीर्ष पदों में 3 फिलहाल रिक्त होने के बीच केंद्र सरकार संशोधित कानून के तहत आयुक्तों को बर्खास्त करने का ज्यादा से ज्यादा अधिकार अपने पास रखना चाहती है.
कांग्रेस पार्टी की नेता और राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी ने भी संशोधन प्रस्ताव का घोर विरोध किया है. उन्होंने एक ट्वीट में लिखा, जब आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या कारगर नहीं हो पाई तो सरकार अब कानून की हत्या पर उतारू हो गई.

सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई कानून का मसौदा तैयार करने वालों में एक निखिल डे ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है. उन्होंने ट्वीट में लिखा, पिछले लगभग 10 वर्षों से भारत के लोगों ने इस 'जन कानून' का उपयोग किया और उसकी रक्षा की. अब बीजेपी लोगों से बात किए बगैर इसमें संशोधन करना चाहती है.

उधर, केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के सूत्रों ने कहा है कि प्रक्रिया में सरकार ने उसके साथ विचार विमर्श नहीं किया.

प्रस्तावित विधेयक पर सख्त ऐतराज जताते हुए एक बयान पर कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज, निखिल डे, प्रदीप प्रधान, राकेश दुबुदू, पंक्ति जोग, वेंकटेश नायक, डॉ शेख ने हस्ताक्षर किया है.

इसमें कहा गया है, ‘आरटीआई कानून के तहत आयुक्तों को प्रदान किया गया दर्जा उन्हें स्वायत्त रूप से काम करने के लिए सशक्त बनाता है और शीर्ष कार्यालयों को भी कानून के प्रावधानों का पालन करना पड़ता है.’ पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने भी प्रस्तावित कदम को पीछे ले जाने वाला प्रस्ताव बताया जिससे कि सीआईसी और एसआईसी की स्वतंत्रता और स्वायत्तता से समझौता होगा.