पद्मभूषण महाकवि गोपालदास नीरज का निधन
नई दिल्ली: पद्मभूषण महाकवि गोपाल दास नीरज का गुरुवार शाम को दिल्ली एम्स में निधन हो गया। शाम करीब 7.50 मिनट पर गोपाल दास नीरज ने अंतिम सांस ली। तबीयत खराब होने के बाद उन्हें बुधवार को आगरा से दिल्ली के एम्स अस्पताल लाया गया। बुधवार शाम करीब 10 बजे वे आगरा से एम्स अस्पताल पहुंचे। जहां, उन्हें ट्रामा सेंटर के आईसीयू में भर्ती कराया गया था।
महाकवि नीरज को मंगलवार सुबह सांस लेने में दिक्कत हुई। इसके बाद उन्हें आगरा के एक अस्पताल में वेंटीलेटर पर रखा गया था। जांच के बाद उनके पायोनिमोथैरस रोग से पीड़ित होने की पुष्टि हुई थी। इस बीमारी में सीने में पस भरने और फेफड़ों में हवा भरने से उसकी झिल्ली को नुकसान पहुंचता है। ऐसे में व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत महसूस होती है। मंगलवार को उनकी हालत नाजुक होने पर चिकित्सकों ने उन्हें एम्स ले जाने की सलाह दी थी, लेकिन हालत गंभीर होने पर एम्स के ट्रामा सेंटर के चिकित्सकों के निर्देशन में उनका आगरा में ही इलाज शुरू कर दिया गया था। लेकिन बाद में उन्हें बुधवार रात 10 बजे दिल्ली एम्स लाया गया।
पुरस्कार एवं सम्मान
1991 में पद्मश्री सम्मान,1994 में यश भारती सम्मान, 2007 में पद्म भूषण सम्मान, विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार, फिल्म फेयर पुरस्कार
नीरज जी को फिल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए 70 के दशक में लगातार तीन बार यह पुरस्कार दिया गया। उनके द्वारा लिए गये पुररकृत गीत हैं- काल का पहिया घूमे रे भइया! (फिल्म: चन्दा और बिजली), बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ (फिल्म: पहचान), ए भाई! ज़रा देख के चलो (फिल्म: मेरा नाम जोकर)
मन्त्रीपद का विशेष दर्जा भी मिला : उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने नीरजजी को भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मन्त्री का दर्जा दिया था।
गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1924 को इटावा जिले के पुरावली गांव में हुआ। मात्र छह साल की उम्र में पिता ब्रजकिशोर सक्सेना का साया उनके उपर से उठ गया। नीरज ने 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी इसलिए शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर भी नौकरी की। लंबी बेरोजगारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी करने लगे।
दिल्ली से नौकरी छूट जाने पर नीरज कानपुर पहुंचे और वहां डीएवी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कंपनी में पांच साल तक टाइपिस्ट का काम किया। कानपुर के कुरसंवा मुहल्ले में उनका लंबा वक्त गुजरा। नौकरी करने के साथ ही प्राइवेट परीक्षाएं देकर उन्होंने 1949 में इंटरमीडिएट, 1951 में बीए और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एमए किया।
नीरज ने मेरठ कॉलेज मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। बाद में वहां की नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गए। फिर अलीगढ़ उनका स्थायी ठिकाना बना और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।
अपनी रुमानी कविताओं के कारण नीरज को देश भर के कवि सम्मेलनों से बुलावा आने लगा। वे हिंदी कविता में मंच के लोकप्रिय कवियों में शुमार हो गए। नीरज खुद को कवि बनने में सबसे बड़ी प्रेरणा हरिवंश राय बच्चन की निशा निमंत्रण को मानते हैं।
नीरज को मुंबई के फिल्म जगत से गीतकार के रूप में फिल्म नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण मिला। पहली ही फिल्म में उनके लिखे कुछ गीत – कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे… और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जाएगा…बेहद लोकप्रिय हुए। इसके बाद वे मुंबई में रहकर फिल्मों के लिए गीत लिखने लगे। उन्होंने मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी कई चर्चित फिल्मों में कई लोकप्रिय गीत लिखे।