जीन थेरेपी की सहायता से गुर्दे की कोशिकाओं के नुकसान को ठीक किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने संभावना जाहिर की है कि इससे गुर्दे के पुराने रोग का इलाज होने की संवभावना है। पुराने गुर्दे के रोग की पहचान इसके धीरे-धीरे गुर्दे के काम करने की क्षमता घटने से की जाती है।

शोधकर्ताओं ने पाया है कि एडिनो-से जुड़ा वायरस (एएवी) गुर्दे में क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को आनुवांशिक सामग्री पहुंचा सकता है। एएवी वायरस से जुड़ा हुआ है जो सर्दी-जुकाम के लिए जिम्मेदार होता है। शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप व दूसरी स्थितियां गुर्दे की पुरानी बीमारी की वजह से पैदा होती है। ऐसा क्षतिग्रस्त गुर्दे के शरीर के अतिरिक्त तरल और अपशिष्ट को प्रभावी तौर पर छान नहीं पाने के कारण होता है।

अमेरिका में वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के गुर्दा रोग विभाग के बेंजामिन डी. हम्फ्रेस ने कहा, गुर्दे की पुरानी बीमारी एक बड़ी व तेजी से बढ़ती समस्या है। दुभार्ग्यपूर्ण रूप से बीते सालों में हमने इस स्थिति के लिए ज्यादा प्रभावी निदान विकसित नहीं किया है। यह वास्तविकता हमें जीन थेरेपी की खोजने को प्रेरित कर रही है।

इस शोधकर्ता दल ने छह एएवी वायरसों का परीक्षण किया। इसमें प्राकृतिक और सिंथेटिक दोनों वायरस शामिल हैं। इनके इस्तेमाल चूहों व स्टेम सेल से विकसित मानव गुर्दे की कोशिकाओं पर किया गया। इस शोध का प्रकाशन पत्रिका ‘अमेरिकन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी’ में किया गया है।

शोधकर्ताओं ने एक कृत्रिम वायरस एएनसी80 बनाया। यह दो कोशिकाओं तक पहुंचने में सफल हुआ। इस वायरस को लक्षित कोशिकाओं तक पहुंचाकर जीन थेरेपी की रणनीति में शोधकर्ताओं ने सफलता प्राप्त की। एडेनो से जुड़े वायरस के बारे में दिलचस्प बात यह है कि वे शरीर में कई महीनों तक बने रहते हैं और संभावित रूप से चिकित्सकीय जीन को अपना काम करने का मौका देते हैं।