अयोध्या: विवादित स्थल पर पूजा की अनुमति की याचिका पर सुनवाई अभी नहीं
नई दिल्ली: अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में अभी सुनवाई नहीं होगी. सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने मंगलवार को सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अपनी अर्जी का जिक्र किया. स्वामी ने पीठ से कहा कि पूजा के अधिकार को लेकर उनकी अर्जी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लिहाजा उनकी अर्जी पर जल्द सुनवाई होनी चाहिए. जिसपर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि "अभी अर्जी पर सुनवाई नहीं की जा सकती, आप ये मसला बाद में उठाएं, अभी मुख्य मामले पर सुनवाई लंबित है."
बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि पर पूजा के अपने 'मूल अधिकार' को लागू करने की अपील की है. उन्होंने सोमवार को कोर्ट से अनुरोध किया कि उनकी याचिका पर फौरन सुनवाई हो. दरअसल, स्वामी के अनुरोध पर ही बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद के संवेदनशील मामले की सुनवाई में तेजी लाई गई है.
अयोध्या में भगवान राम की पूजा का हक मांगने वाली स्वामी की अर्जी पर इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया था. बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने 23 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में रामजन्म भूमि पर पूजा अर्चना के लिए अर्जी दायर की थी. स्वामी ने पूजा-अर्चना करने के मूल अधिकार को लागू कराने के लिए अर्जी पर जल्द सुनवाई का अनुरोध भी किया था. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने इस मामले का उल्लेख किया था. जिसके बाद सीजेआइ दीपक मिश्रा ने कहा कि जुलाई में अदालत आएं हम देखेंगे कि हम इस पर क्या कर सकते हैं.
अयोध्या मुख्य मामले की 5 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है.अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट फिलहाल विचार कर रहा है कि नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं. इससे पहले मुस्लिम पक्षकारों ने फैसले में दी गई व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजे जाने की मांग की थी.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1994 में अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले डाक्टर एम. इस्माइल फारुकी के मामले में 3-2 के बहुमत से दी गई व्यवस्था में कहा था कि नमाज के लिए मस्जिद इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है. मुसलमान कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं. यहां तक कि खुले में भी नमाज अदा की जा सकती है. ये बात फैसले के पैराग्राफ 82 में कही गई है. मुस्लिम पक्षकार एम. सिद्दीकी के वकील राजीव धवन ने गत 5 दिसंबर को इस फैसले पर सवाल उठाते मामला पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग की है.