लखनऊ: उत्तर प्रदेश में महागठबंधन के सामने मोदी मैजिक फेल हो गया है. कैराना लोकसभा सीट में गठबंधन प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने बीजेपी की मृगांका सिंह को पटखनी दी. वहीं नूरपुर विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में गठबंधन प्रत्याशी सपा के नईमुल हसन ने बीजेपी की अवनि सिंह को 6271 वोटों से हरा दिया.

बता दें दोनों ही सीटों पर बीजेपी का कब्जा था. बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन से कैराना सीट रिक्त हुई थी. नूरपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव बीजेपी विधायक लोकेंद्र सिंह की सड़क हादसे में मौत की वजह से हुई थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य समेत दर्जनों सांसद, विधायक और मंत्रियों ने काफी मेहनत की थी. 27 मई को पीएम मोदी ने कैराना से सटे जिले बागपत में रोडशो किया था. बावजूद इसके बीजेपी दोनों सीट बचाने में कामयाब नहीं रही.

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव में पराजय बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती मानी जा रही है. 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को संयुक्त विपक्ष का सामना करना है. ऐसे में उपचुनाव के नतीजे पार्टी के लिए विचलित करने वाले हैं.

हालांकि, दोनों ही सीटों पर हार-जीत का अंतर 2014 लोकसभा चुनाव और 2017 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले कम ही है. हुकुम सिंह ने कैराना में करीब तीन लाख वोटों से जीत हासिल की थी. जबकि लोकेंद्र सिंह ने करीब 13 हजार वोटों से नूरपुर सीट जीती थी.

उपचुनाव क्षेत्रीय आवश्यकताओं पर होते हैं. लेकिन लोकसभा के मुद्दे अलग होते हैं. उपचुनाव में जातिगत भी असर पड़ता है. उपचुनाव के मुद्दे लोकसभा से अलग रहते हैं. बीजेपी पूरे देश में अच्छा प्रदर्शन कर रही है. विपक्ष की तथाकथित एकता अपने विघटन की ओर है. बीजेपी दूसरे दलों को एक समझकर सामना करेगी. लोकसभा चुनाव में हम अलग रणनीति लेकर आएंगे. यूपी में भी हम भारी बहुमत से लोकसभा चुनाव जीतेंगे.

जबकि 2019 से पहले महागठबंधन के लिए यह जीत किसी संजीवनी से कम नहीं है. खासकर आरएलडी के अजीत सिंह के लिए यह जीत अपनी खोई जमीन वापस पाने की मानी जा रही है. मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जिस तरह से मुस्लिम और जाट बंटा था, इस उपचुनाव में वह एकजुट दिखा और अजीत सिंह के साथ भी गया.