प्रदेश में लालफीताशाही कायम, अंतिम-आदमी को नहीं मिल रहा उनका हक: विजय पाण्डेय

लखनऊ: उत्तर-प्रदेश की भाजपा सरकार के तमाम दावों और और चेतावनियों के बावजूद आला अधिकारियों पर इसका कोई खास असर नहीं है क्योंकि जवाबदेही को धरातल पर नहीं उतारा जा रहा है इसी का परिणाम है कि 26 जून 1980 से सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग में कार्यरत अंबेडकरनगर निवासी विजय पाल सिंह 37 वर्ष की लम्बी नौकरी के बाद सेवानिवृत्त हुआ और अभी तक उसे अपनी पेंशन नहीं मिली जबकि उसे सेवानिवृत्त हुए करीब छः महीने होने जा रहे हैं, जबकि पीड़ित प्रमुख सचिव, आयुक्त एवं प्रशासक और भूमि संरक्षण अधिकारी अंबेडकरनगर के दफ्तर में चक्कर लगाकर थक गया तब उसने उत्तर-प्रदेश कांग्रेस विधि-विभाग के प्रदेश महासचिव, मीडिया प्रभारी एवं एऍफ़ टी बार के पूर्व महामंत्री विजय कुमार पाण्डेय से अपनी दास्तां बयाँ की और बताया कि उसके बेटे का असामयिक निधन कैसर से हो गया जिसके इलाज में उसने अपने जीवन की पूरी कमाई खर्च कर दी उसके बाद नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ लेकिन आज तक अधिकारियों की मनमानी की वजह से पेंशन नहीं मिल रही है पूरा परिवार भुखमरी के कगार पर पहुँच गया है, परिवार चलाने का कोई और जरिया न होने के कारण रिश्तेदारों से कर्ज लेकर किसी तरह जीवन गुजारने पर मजबूर हूँ इस सरकार में तो अंतिम-आदमी की सुनवाई ही नहीं हैl

विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि पेंशन एक संवैधानिक अधिकार है भीख नहीं यह व्यक्तिगत संपत्ति है जिसे सेवानिवृत्ति के पश्चात एक मिनट भी रोंकने का अधिकार किसी को नहीं है लेकिन इस सरकार में तो लालफीताशाही कायम है जवाबदेही है नहीं केवल बातें हैं वरना क्या कारण है कि लोग अदालत का दरवाजा खटखटाए बगैर अपने अधिकार नहीं पा रहे हैं आखिर विजय पाल सिंह जैसे लोग जिन पर विपत्तियों का पहाड़ टूटा है अपनी पेंशन के लिए परेशान हैं विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि मैंने इस पीड़ा को महसूस करके न के बराबर खर्चे पर पीड़ित का मुकदमा दायर करके उच्च-न्यायलय से आदेश करा दिया है लेकिन अभी कुछ वक्त लग सकता है क्योंकि अफसरशाही का गुरुर सातवें आसमान पर है, लेकिन अंतिम-आदमी के हक़ के लिए वह उनके साथ है और भविष्य में भी यदि ऐसा प्रकरण सामने आता है तो बगैर किसी फ़ीस के लोगों को उनका हक़ सरकार से छीनकर दिलाएँगें, आखिर पेंशन सरकार की तरफ से दी जाने वाली भीख नहीं है, अधिकार है इसके लिए यदि वृद्धावस्था में दर-दर की ठोकर खानी पड़े तो समझ लेना चाहिए कि सरकार के दावों में कितना सच है l