दलितों पर जारी हिंसा रोकने के लिए राष्ट्रपति को दिया ज्ञापन

नई दिल्ली: लोकतंत्र को बचाने और देश की शांति के लिए प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा सांसदों द्वारा किया जा रहा उपवास नौटंकी है। यदि पीएम और उनकी सरकार देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास रखती है और शांति के प्रति ईमानदार है तो उसे सबसे पहले 2 अप्रैल के बाद पूरे देश में दलितों, आदिवासियों और समाज के कमजोर तबकों पर भाजपा की राज्य सरकारों के संरक्षण में हुई हिंसा के लिए माफी मांगनी चाहिए और तत्काल दलितों व आदिवासियों के संरक्षण के लिए अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी करना चाहिए। यह बातें आज दिल्ली के प्रेस क्लब में हुई पत्रकार वार्ता में जन मंच के संयोजक व पूर्व आई. जी. एस. आर. दारापुरी ने कहीं।

उन्होंने पत्र प्रतिनिधियों को बताया कि 2 अप्रैल के भारत बंद के बाद उ. प्र. समेत पूरे देश में में जारी दलितों के दमन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने, दलितों पर लादे मुकदमों को वापस लेने, इस बंद में हुई हिंसा की उच्चस्तरीय जांच कराने, उस हिंसा के नाम पर गिरफ्तार सभी को तत्काल बिना शर्त रिहा करने व बंद के दौरान मरें लोगों को 20 लाख रूo मुआवजा देने, एस-एसटी एक्ट 1989 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गये संशोधन के विधि विरूद्ध आदेश के प्रभावों को रोकने के लिए अध्यादेश लाने और भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर समेत उसके सभी साथियों पर लगी रासुका वापस लेकर उन्हें तत्काल रिहा करने की मांग पर आज राष्ट्रपति के नाम सम्बोधित ज्ञापन भेजा गया है।

पत्रकार वार्ता में उन्होंने जेल में बंद भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर की भूख हड़ताल का समर्थन करते हुए कहा कि मोदी और योगी सरकार अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए पूरे देश में जातीय धु्रवीकरण की घृणित राजनीति का खेल खेल रही है। दलितों, आदिवासियों और समाज के कमजोर तबकों के विरूद्ध सरकार ने युद्ध छेड़ दिया है। अकेले उo प्रo में भारत बंद में हुई हिंसा के नाम पर हजारों दलितों के विरूद्ध फर्जी मुकदमें कायम कर दिए गए हैं। उनको गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया है। उन्हें थानों में बर्बर तरीके से पीटा जा रहा है। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गो के साथ बदसलूकी की गयी है। बकायदा सूची बनाकर दलितों की हत्याएं हो रही हैं। भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर और उनके साथियों की हाईकोर्ट से जमानत होने के बाद सरकार ने रासुका लगाकर जेल में बंद कर रखा है। सरकार की दमन की यह कार्यवाहियां देश और प्रदेश की शांति और सामाजिक ताने-बाने को तहस तहस कर देंगी।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की सुप्रीम कोर्ट में की गयी लचर पैरवी और एस-एसटी कानून के खिलाफ दी गयी दलीलों के कारण ही सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट को कमजोर करने वाला फैसला सुनाया है। यह बात खुद सरकार द्वारा दाखिल की गयी रिव्यु पेटिशन की सुनवाई में माननीय न्यायधीश ने कहीं है। सरकार के दलित/ आदिवासी विरोधी रूख के कारण आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से तो देश में आईपीसी और सीआरपीसी को लागू करना ही असम्भव हो जायेगा। क्योंकि तब तो हर एफआईआर के दर्ज करने के पूर्व जांच करने की बात उठने लगेगी। उन्होंने कहा कि भाजपा के दलितों सासदों द्वारा लगातार लिखी चिठ्ठियों से यह स्पष्ट है कि भाजपा में दलित आदिवासियों का सम्मान सुरक्षित नहीं है। इसलिए उन्हें भाजपा द्वारा करायी उपवास की नौटंकी में हिस्सेदारी करने की जगह भाजपा से इस्तीफा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति दलित जाति से आते हैं और देश के संवैधानिक प्रमुख हैं. अतः उन्हें एससी-एसटी एक्ट-1989 में प्रदत्त दलितों-आदिवासियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए तत्काल अध्यादेश लाने के लिए भारत सरकार को निर्देशित करना चाहिए।