अयोध्या मामले में जमीनी विवाद पर सुनवाई में होगी देरी
टाइटल सूट से पहले सुप्रीम कोर्ट करेगा कई और पहलुओं पर ग़ौर
नई दिल्ली: राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में नया मोड़ आ गया है. मामले में मुख्य जमीनी विवाद पर सुनवाई में देरी होगी. टाइटल सूट से पहले सुप्रीम कोर्ट अब पहले इस पहलू पर फैसला करेगा कि अयोध्या मामले की सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ को भेजी जाए या नहीं. कोर्ट पहले ये देखेगा कि क्या संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं, क्या मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है. इसके बाद ही टाइटल सूट पर विचार होगा.
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस और वकील राजीव धवन के बीच गरमागरम बहस हुई. सीजेआई ने धवन से कहा कि अब तक किसी ने इस मामले को संविधान पीठ को भेजने की दलील नहीं दी है. अब आप उस मुद्दे पर बहस करना चाहते हैं जो अब तक आपकी दलील का आधार ही नहीं है. इस पर धवन बोले कि मैंने ही नहीं बल्कि कई वकीलों ने इस मुद्दे को उठाया है. कोर्ट में ये सब बन्द हो. बेंच वकीलों का सम्मान करे. यही वजह है कि मैंने कोर्ट में आना छोड़ा था. जब मैंने संविधान पीठ को ये मामला भेजने की दलील दी है तो माइलॉर्ड कैसे इससे इनकार कर रहे हैं. कोर्ट में ये सब बन्द होना चाहिए. आखिर में डॉ धवन ने कहा कि वैसे तो सीजेआई दीपक मिश्रा काफी शांत और धैर्यवान हैं. पर कभी कभी वे इस स्वभाव से बाहर हो जाते हैं.
साल 1994 में पांच जजों के पीठ ने राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था ताकि हिंदू पूजा कर सकें. पीठ ने यह भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है. वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए जमीन का एक तिहाई हिस्सा हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई हिस्सा राम लला को दिया था. हाईकोर्ट ने संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर भरोसा जताया और हिंदुओं के अधिकार को मान्यता दी.
मुस्लिम पक्षकार की ओर से पेश राजीव धवन ने कोर्ट से संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर विचार करने की मांग की. उन्होंने कहा कि उस आदेश ने मुस्लिमों के बाबरी मस्जिद में नमाज पढ़ने के अधिकार को छीन लिया है. इसलिए पहले संविधान पीठ के उस फैसले पर विचार होना चाहिए. चीफ जस्टिस ने कहा कि वे अगली सुनवाई के दिन 23 मार्च को इस मुद्दे पर अपने कानूनी पहलुओं को रखें.
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या केस में सारी हस्तक्षेप याचिकाएं खारिज कर दी हैं. कोर्ट ने कहा कि सिविल सूट में तीसरे पक्ष की सुनवाई नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री को कहा कि कोई अर्जी स्वीकार न करें. कोई भी इस मामले में पक्षकारों पर समझौता करने का दबाव नहीं डाल सकता. कोर्ट ने एक हस्तक्षेप याचिकाकर्ता को लेकर कहा कि उसने कहा कि उसकी याचिका पर 10523 लोगों ने साइन किए हैं और इस मामले में समझौता होना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में तीसरे पक्ष को कैसे सुना जा सकता है. आपको तब हाईकोर्ट में जाना चाहिए था जब सुनवाई चल रही थी.