शांति के लिए दुनिया भारत के मुसलमानों की तरफ़ उम्मीद से देख रही है: मुफ़्ती अशफ़ाक़ हुसैन क़ादरी
• भारत के सबसे बड़े मुस्लिम छात्र संगठन की राष्ट्रीय रैली
• मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया का सफल आयोजन
• वैश्विक शांति और इस्लाम विषय पर जनता की रहनुमाई
• रैली में हिस्सा लेने के लिए भारत के कोने कोने से पहुँचे युवा
• भारत को शांति के मुखिया के तौर पर पहचानने की अपील
नई दिल्ली: इस्लाम निभाने ही नहीं बल्कि इस्लाम में जिस सामाजिक क्रांति का ज़िक्र किया गया है, उसकी अनुपालना के लिए भारत सबसे उपयुक्त देश है। भारत में इस्लाम के हर अरकान को किसी बाधा के पूरा किया जा सकता है। इस्लाम में सामाजिक आंदोलने के लिए भारत की भूमि पर किए गए सूफ़ी संतों के प्रयोगों का यहाँ निष्पक्ष समाज ने खुले दिल से स्वागत किया और आज पूरी दुनिया भारत में सूफ़ी इस्लाम के कामयाब प्रयोगों में शांति का मार्ग तलाश रहे हैं। यह बात आज दिल्ली के शास्त्री पार्क में आयोजित ‘वैश्विक शांति और इस्लाम’ विषय पर मुफ़्ती अशफ़ाक़ हुसैन क़ादरी ने कही। आयोजन भारत के सबसे बड़े मुस्लिम छात्र संगठन मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से किया गया था जिसमें हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया।
इमाम हुसैन का बलिदान शांति के लिए- मुफ़्ती अशफ़ाक़
मुफ़्ती अशफ़ाक़ ने कहाकि पूरे अरब में आज इस्लाम के नाम पर सिर्फ़ अशांति ही नहीं बल्कि वहाँ किंगडम के नाम पर सत्ताधारी अधिनायकवादियों ने जनता की आवाज़ को नहीं, बल्कि उदार इस्लाम की आवाज़ को भी दबा दिया है। अधिनायकवाद और इस्लाम के नाम पर वहाबी विचारधारा के प्रसार और प्रश्रय ने लोगों का जीना हराम कर दिया है। आतंकवाद और राजनीतिक संकट की इस घड़ी में अरब के मुसलमान भी भारत की तरफ़ देख रहे हैं क्योंकि भारत में दुनिया का सबसे अधिक मुसलमान अन्य समाजों के साथ शांतिपूर्वक रह रहा है। मुफ़्ती ने उदाहरण देते हुए बताया कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब और उनके नाती इमाम हज़रत हुसैन ने भारत के प्रति अपने प्रेम का इज़हार 1400 वर्ष पूर्व ही कर दिया था। उन्होंने समझाया कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब के मुख से सुनकर ही इमाम हज़रत हुसैन ने अधिनायकवादी यज़ीद से संघर्ष के बजाय भारत आने की इच्छा जताई थी लेकिन यज़ीद आख़िरकार नहीं माना। उन्होंने बताया कि इमाम हज़रत हुसैन जानते हैं कि भारत शांति, सहअस्तित्व और स्वागत की भूमि है। जो संदेश पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब और इमाम हज़रत हुसैन के मुख से निकले हैं, वह कालाखंड में नहीं बाँटे जा सकते, यह सर्वकालिक है। मुफ़्ती अशफ़ाक़ ने युवाओं को समझाया कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब का घराना यानी हज़रत इमाम हुसैन और 72 घर वालों ने शांति और अन्याय के आगे नहीं झुकने के लिए बलिदान दे दिया। इमाम हज़रत हुसैन ने अपने घर मदीना में अशांति के बजाय, शहर छोड़ना उचित समझा। यह शांति स्थापना के लिए अपनी जन्मभूमि और प्राण के बलिदान का इतिहास का सबसे महान् उदाहरण है। हमें इससे सीख लेते हुए देश प्रेम और शांति के प्रयासों की स्थापना के लिए प्रण प्राण से पेश पेश रहना चाहिए।
युवा क्रांति और आतंकवाद में अंतर समझें- जावेद नक़्शबंदी
इस अवसर पर प्रख्यात सूफ़ी विचारक सैयद जावेद नक़्शबंदी ने कहाकि भारत में अब भी कट्टरता वह स्थान नहीं बना पाई है जिसका इरादा हर अशांत प्रवृत्ति के देश, संगठन एवं व्यक्ति चाहते हैं। नक़्शबंदी ने सूफ़ी परम्परा को याद करते हुए युवाओं से अपील की कि वह क्रांति और आतंकवाद में फर्क़ को समझें। क्रांति बदलाव, शांति, प्रेम और सहअस्तित्व का प्रवाह करती है जबकि आतंकवाद बेगुनाह लोगों की हत्या, अन्याय, भया और अस्थिरता की तरफ़ ले जाता है। इस्लाम की मंशा दुनिया में शांति स्थापना की रही है। आप देखेंगे कि भारत में ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह. के आने के बाद राजनीतिक स्थिरता, सहअस्तित्व और रूहानी प्रेम की एक अनूठी परम्परा शुरू हुई जो बाद में भक्ति काल से आधुनिक भारत तक व्याप्त है। नक़्शबंदी ने समझाया कि हमें साथ रहकर दुनिया में व्याप्त अशांति और आतंकवाद के माहौल में सूफ़ीवाद के ज़रिए शानदार मिसाल क़ायम करते हुए सामाजिक संदॆश देने का प्रयास करते रहना है। यही हिन्द के सुल्तान ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह. को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
वैश्विक शांति में भारत को लीडर बनाएं सूफ़ी युवा- सैयद क़ादरी
मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रख्यात युवा सूफ़ी चिंतक सैयद मुहम्मद क़ादरी ने कहाकि हमें यह समझना चाहिए कि भारत में इस्लामी यानी वहाबी आतंकवाद का नामों निशान भी नहीं है। जो भारतीय मुस्लिम कट्टर इस्लाम के झांसे में आए भी, बहुत जल्द वह इसकी भावना को समझकर वापस सूफ़ी विचारधारा में लौट आए। दुनिया में सर्वाधिक मुस्लिम आबादी होने के बावजूद इस्लामी यानी वहाबी आतंकवाद में भारत के नौजवानों को आप नहीं देखेंगे। क़ादरी ने कहाकि युवाओं को सूफ़ी संतों के संदेशों को समझना चाहिए। सूफ़ियों की परम्परा स्व से पूर्व समाज, ख़ुद से पहले आप और इच्छा से पूर्व कल्याण की रही है। यह बात राष्ट्र निर्माण और समाज के कल्याण पर भी लागू होती है। क़ादरी ने युवाओं से अपील की कि वह सामाजिक कल्याण और सामूहिक विकास के लिए आगे आएं और वैश्विक शांति की स्थापना के लिए भारत को सबसे आगे खड़ा करने में सफल सहयोग दें।
ख़्वाजा ने चिश्ती रंग को सामाजिक क्रांति का रंग बना दिया- ख़ालिद अय्यूब
जयपुर से आए शहर के उपमुफ़्ती ख़ालिद अय्यूब मिस्बाही ने कहाकि भारत आध्यात्मिक प्रयोगों की भूमि रहा है। उन्होंने दो शानदार उदाहरण देते हुए भारत को सूफ़ीवाद और इस्लाम की सबसे उपयुक्त भूमि बताया। दुनिया की सबसे अधिक इस्लामी पुस्तकें भारतीयों ने लिखी हैं और वह तक़रीबन सूफ़ी इस्लाम पर आधारित हैं जो शांति, सह अस्तित्व और प्रेम का संदेश देती हैं। उन्होंने युवाओं को बताया कि जिसे हिन्दू भगवा रंग कहते हैं, उसे मुसलमान चिश्ती रंग क्यों कहते हैं? उन्होंने समझाया कि हिन्द के सुल्तान ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह. ने भारत आने के बाद गेरुए वेशभूषा और पटका को अपनी पोशाक बना लिया था ताकि लोग हिन्दू और मुसलमान के नाम पर विभेद में नहीं पड़ें और उनके शांति के संदेश को सुनें। तभी से भारत के मुसलमानों ने भगवा रंग को चिश्ती रंग कहना शुरू कर दिया। मुफ़्ती ख़ालिद ने बताया कि आप अजमेर जाएंगे तो हज़ारों लोगों के गलों में भगवा यानी चिश्ती रंग के पटकों, रुमाल और शॉल को देखेंगे। आपको इसके पीछे की वजह पता करनी चाहिए। यह ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह. की डाली गई परम्परा है जिसे लोग इस अशांति, संशय और हिंसा के माहौल में भी निभाते हैं। यह आपको सिर्फ़ भारत में देखने को मिलेगा। उन्होंने युवाओं से ख़्वाजा साहब के संदेश को आत्मसात करते हुए सामाजिक सहअस्तित्व को बढ़ाने का आह्वान किया।
प्रतिक्रियावादी नहीं, मुस्लिम युवा हैं रचनात्मक- शुजात क़ादरी
आयोजक एवं मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष शुजात अली क़ादरी ने बताया कि उनकी जन्मभूमि बहराइच है और वहाँ ग़ाज़ी पीर की दरगाह पर लाखों श्रद्धालु आते हैं जिसमें हिन्दू बहुलता में होते हैं। शुजात ने कहाकि मुस्लिम युवाओं को मुख्यधारा में लाते हुए उन्हें करियर, रोज़गार, शांति और सहअस्तित्व की तरफ़ लाने के लिए मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया पिछले 44 वर्षों से कार्य कर रही है। उन्होंने अपने संगठन के 22 राज्य मुख्यालयों का ज़िक्र करते हुए बताया कि जिस तरह से युवाओं ने उनके संगठन को स्वीकार किया है, यह दर्शाता है कि भारत का मुस्लिम युवा सूफ़ीवाद की शिक्षाओं को स्वीकार करने के लिए तत्पर है। उन्होंने ज़ाकिर नायक का उदाहरण देते हुए युवाओं को समझाया कि क़ुरान और हदीस के ग़लत संदर्भ देकर युवाओं को भड़काने वाले इस तरह के नालायक वक्ता युवाओं को प्रतिक्रियावादी बनाना चाहते हैं लेकिन वह सफल नहीं होंगे क्योंकि भारत का मुस्लिम युवा सक्रीय, सकारात्मक और रचनात्मक है।
देशप्रेम के नारों से गूंज उठा आसमान
इस दौरान हिन्दुस्तान ज़िंदाबाद, ख़्वाजा का हिंदुस्तान ज़िंदाबाद से आकाश गुंजायमान हो गया। मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया के सैकड़ों कार्यकर्ताओं समेत भारी संख्या में स्थानीय युवाओं ने कार्यक्रम में शिरकत की। आम तौर पर ख़ाली रहने शास्त्री पार्क में तिल रखने को भी जगह नहीं थी। सबसे अधिक जोश युवाओं और बच्चों में देखा गया।
युवाओं की महती भूमिका रही
मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया की वैश्विक शांति और इस्लाम पर आयोजित इस रैली में राजधानी के हर शिक्षण संस्थान से युवा पहुँचे। इसमें संगठन के राष्ट्रीय महासचिव अब्दुल क़ादिर हमदानी, मौलाना अब्दुल वाहिद, कारी सग़ीर अंसारी, और मौलाना ग़ुलाम मुहीयुद्दीन हशमती समेत संगठन पदाधिकारियों ने भाग लिया। दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली यूनिवर्सिटी के युवाओं ने भारी संख्या में इस आयोजन में हिस्सा लिया।