इस्लामी सजा के क़ानून में भी इन्सानियत को प्राधमिकता है: मौलाना बाकरी
लखनऊ: मजलिसए ओलमाये हिन्द द्वारा आयोजित साप्ताहिक दीनी समर कलासेज़ में मौलाना सैयद हसनैन बाकरी ने “इस्लाम में जुर्म साबित होने के तरीके“ के विषय पर लेकचर दिया। मौलाना ने इस्लामी हुदूद और सजाओं के तरीकों के महत्व पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि इस्लाम मानवता के कल्याण,और उसकी फलाह व बेहबूद के लिए आया है,इस लिये इस्लामी सजा के कानुन में भी इन्सानियत को प्राधमिकता दि गई है। इन्सानियत के फायदों के मद्देनजर ही सजा के नियम बनाए गए ताकि अपराध का खात्मा हो सके और अपराधियों को समाज की भलाई के लिए सजा दी जा सके ।मौलाना ने कहा कि सजा के नियम समाज मैं लागु करना आसान काम नहीं है ,अकसर सख्त सज़ाओं के कार्यान्वयन का एक कारण ऐसे तत्वों का सफाया करना मकसद होता है जो मानवता के लिए नासूर का रूप धारण कर लेते हैं। वहीं सजा के नियमों को लागू करने का मकसद दूसरों के लिये इब्रत , अपराध पर काबू पाने की कोषिष, आपराधिक मानसिकताओं पर शिकंजा कसना, आत्मसम्मान की रक्षा और समाज का सही प्रशिक्षण भी है। मौलाना ने कहा कि जो लोग इस्लामी नियमों की सखती पर आपत्ति करते थे आज वही वर्ग इस्लामी सजा के नियम की आफ़ाकियत, हमा गिरियत और तरबियत के पहलुओं को समझ रहा है। यही कारण है कि गैर मुस्लिम भी ऐसे स्तंभ और थीसिस लिख रहे हैं जिनमें इस्लामी नियमों और सजाओं के कानुन के महत्व पर प्रकाष डाल रहे है, साथ ही आज के दुनियावी नियमों के साथ उनका विश्लेषण पेश किया जा रहा है। मौलाना ने कहा कि अगर सही ढंग से इस्लामी नियमों को अमल में लाया जाए तो समाज में अपराध का ग्राफ कम होगा और समाज मै फसाद फेलने से बचा जा सकता है। मौलाना ने विवरण के साथ इस्लामी सजाओं के नियमों की आज के नियमों के साथ तुलना की और हकीकत पेश की ,साथ ही इस्लामी नियमों के महत्व पर एहम चर्चा की।