मानवाधिकारों की रक्षा के लिए राजनीति में आना ज़रूरी
इंस्टिट्यूट फॉर सोशल हार्मोनी एन्ड अप्लिफ्मेंट की ओर से 'मानवाधिकार विषय पर संगोष्ठी आयोजित
लखनऊ: यदि मानवाधिकार का ध्यान आता है, तो हम तुरंत पैगंबर मुहम्मद (सल०) की वो बात याद आती हैं, जिसमें उन्होंने एक ऐतिहासिक बात कही थी कि आप सभी माता-पिता के वंश हैं, आप में से कोई भी इसलिए उत्तम नही है कि वो कला है या गोरा है , अरबी है अजमी है। पूर्व आई ए एस डॉक्टर अनीस अंसारी ने "मानवाधिकार" के विषय पर इशू की जानिब से होने वाली संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए उपस्थित लोगों से कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने 10 / अगस्त 1 948 को अपने अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन पर चार्टर पेश किया, जिस में सभी देशों पर जोर दिया गया कि वे अपने देश थे मैं मानवाधिकार का पालन करेंगे और सुरक्षा के नियमों को लागू करेंगे।
उन्होंने कहा कि हमारे देश में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था है जिसमें हमें हमारी राय का एक महत्वपूर्ण अधिकार दिया गया है, जिसे हम राजनीति में हमारे अधिकार का उपयोग करके अपनी पसंद की सरकार को स्थापित कर सकते हैं। उन्होंने कहा, "हमें मानवाधिकारों की रक्षा के लिए राजनीति में आना चाहिये , अन्यथा वे राजनीति में आएंगे, जिनका इन अधिकारों के संरक्षण पर कोई असर नहीं ।" हमें जनता के बीच जाना चाहिए और उन्हें जागृत करना होगा और उन्हें बुरी तरह से अंतर करना होगा, फिर इन अधिकारों की सुरक्षा संभव है, या इन मामलों को निपटाने के लिए केवल शिकायतें उचित नहीं हैं।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मौलाना शहाबुद्दीन सल्फ़ी मदनी ने कहा कि मोहम्मद (सल०) द्वारा दिया गया भाषण हमें मानव अधिकारों के सम्मान की ओर ध्यान दिलाता है जिसमें उन्होंने एक व्यक्ति पर दूसरे व्यक्ति का खून, माल, सम्मान को हराम क़रार दिया था , मोहम्मद (सल०) ने इस अवसर पर जो घोषणापत्र पेश किया था अगर यह पूरी दुनिया का पालन करती है तो इस दुनिया की यह स्थिति नहीं रहेगी बल्कि यह पूरी दुनिया शांति का गहवारा बन जाएगी ।
संगोष्ठी का संचालन मोहम्मद खालिद ने किया, उन्होंने कहा की मानव जन्म और मानव अधिकार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जब मनुष्य इस दुनिया में आता है उसके साथ ही उसके अधिकार भी अनिवार्य रूप से आ जाते हैं इसलिए मानवाधिकारों का हनन का कोई सवाल ही नहीं उठता है।
इशु के सचिव मौलाना ज़हीर सिद्दीकी ने कहा कि अधिकारों के बारे में बात करना सिर्फ एक चीज है, जब तक हम अधिकारों के बारे में बात नहीं करते हैं, तो हमें कर्तव्यों के बारे में बात करनी होगी।उन्हों ने कहा कि हमें समानता की बात नहीं बल्कि न्याय की बात करनी चाहिये, क्योंकि जब हम न्याय के साथ काम करते हैं तो पूर्ण अधिकार प्राप्त करना संभव है। मौलाना ने कहा कि अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जो खुद को सबसे महान शोधकर्ता मानते हैं, उसी राष्ट्र में सब से अधिक अधिकारों के हनन होते हैं।
इस के अतिरिक्त कार्यक्रम से महंत दिव्या गिरी, प्रोo रमेश दीक्षित , के के वध आदि ने भी सम्बोधित किया. कार्यक्रम में विशेष रूप से मौलाना मुस्तफा नदवी, मौलाना अतीक, एडो० सुहैल , एडो० मो० हसन रिज़वी , एडो० रेहान अंसारी , राम किशोर, डा०अब्दुल कुद्दुस हाश्मी, मुमताज़ अहमद, नौशाद लारी आदि उपस्थित थे.