‘दास्ताने दस्तकारी’ में दिखा चिकन-ज़रदोजी कारीगरों का दर्द
लखनऊ : उत्तर प्रदेश पर्यटन ने कोटवारा स्टूडियो, रूमी फाउंडेशन और नेशनल एचआरडी नेटवर्क के सहयोग से आज “दास्ताने दस्तकारी“ – “हस्तकला की विरासत“ का आयोजन किया। इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश में हस्तशिल्प की उपेक्षित स्थिति और इनके निराशाजनक भविष्य के प्रति सरकार और जनता का ध्यान आकर्षित करना तथा यह संवाद उत्पन्न करना कि किस प्रकार हस्तशिल्प को संपन्न एवं आत्म-स्थिर व्यावसायिक माॅडल बनाया जाए, था। दास्ताने दस्तकारी प्रसिद्ध फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली द्वारा बनाई गई दो लघु फिल्मों की एक सिरीज है, जो लखनऊ की चिकन एवं जरदोजी की कारीगरी और बनारस की बुनाई के इर्दगिर्द घूमती है। इन फिल्मों को उ0प्र0 पर्यटन द्वारा प्रायोजित किया गया है। दर्शकों को लखनऊ और बनारस आधारित लघु फिल्में देखने का अवसर प्राप्त हुआ जिसमें शिल्प कारीगरों की जिंदगी की वास्तविक तस्वीर और विरासत तथा शिल्प को जिंदा रखने के लिए उनके दैनिक संघर्ष पर प्रकाश डाला गया है। इस फिल्म में यह चित्रित किया गया है कि किस प्रकार कारीगरों की वर्तमान पीढ़ी उपेक्षित जीवन जी रही है तथा किस प्रकार वे इस विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अपने बच्चों को प्रेरित करने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं।
इस अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि पर्यटन मंत्री डा0 रीता बहुगुणा जोशी ने कहा कि हस्तशिल्प और पर्यटन को विशेषकर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में हाथ मिलाकर काम करना चाहिए तथा यहाँ पर पर्यटन और हस्तशिल्प दोनों के लिए उच्च संभावनाएँ हैं। डा0 जोशी ने उल्लेख किया कि राज्य में अनुभव आधारित पर्यटन बनाने की जरूरत है और यह तभी हो सकता है जब उ0प्र0 के हस्तशिल्प का पर्यटन यूएसपी के रूप में विपणन किया जा सके। इससे कारीगरों की आजीविका के अवसर भी बढ़ेंगे, जो वर्तमान में अन्य परिचारक कार्यों में लगे हुए हैं।
फिल्म का प्रदर्शन किये जाने के बाद पैनल चर्चा की गई जिसमें मंच पर कई प्रख्यात वक्ताओं ने भाग लिया। इस पैनल में श्रीमती जोहरा चटर्जी (भूतपूर्व सचिव टेक्स्टाइल- भारत सरकार), अवनीश अवस्थी (प्रधान सचिव एवं महानिदेशक पर्यटन), भुवनेश कुमार (सचिव व्यावसायिक शिक्षा एवं कौशल विकास), फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली, प्रख्यात फिल्म निर्माता और कलाकार तथा मीरा अली डिजाइनर एवं इंटीरियर डेकोरेटर शामिल थीं।
इस चर्चा का किरोन चोपड़ा (भूतपूर्व अध्यक्ष सीआईआई उ0प्र0) द्वारा संचालन किया गया। इस चर्चा की शुरूआत श्री अली द्वारा हस्तशिल्प कारीगरों की दुर्दशा के बारे में उनके अनुभव साझा करते हुए की गई जिसे उन्होंने लघु फिल्में बनाते समय देखा था। उन्होंने कारीगरों के अधम रहन-सहन को इसका कारण बताया। श्रीमती जोहरा चटर्जी ने चिकन एवं जरदोजी जैसे कपड़े के कारीगरों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की तुलना भारत के अन्य कारीगरों से की। उन्होंने साझा किया कि किस प्रकार पूरे भारत के कुछ हस्तशिल्प कारीगर उ0प्र0 के उनके समकक्ष की अपेक्षा बेहतर कर रहे हैं। श्री भुवनेश कुमार ने कहा कि इन हस्तशिल्पों को सिर्फ पारिवारिक विरासत की अपेक्षा ज्यादा पेशेवर आउटलुक के साथ देखने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यदि हस्तशिल्प की उत्तरजीविता सुनिश्चित की जानी है तो कारीगरों के कौशल को प्राथमिकता से लेने की जरूरत है। अंत में श्री अवस्थी ने कहा कि उ0प्र0 को पर्यटन के लिए एक ठोस माॅडल की जरूरत है जो स्थानीय संस्कृति के स्तंभों पर निर्मित हो तथा हस्तशिल्प इस माॅडल का महत्वपूर्ण अवयव होगा। इस चर्चा को समाप्त करते हुए संचालक श्री चोपड़ा ने उ0प्र0 में हस्तशिल्प के पुनरुद्धार के लिए अपने कुछ विचार व्यक्त किये। उन्होंने दृढ़तापूर्वक हस्तशिल्प क्षेत्र में निजी उद्यमों की सक्रिय भागीदारी पर भी जोर दिया और कहा कि आने वाले समय में हस्तशिल्प तभी जीवित रह सकता है जब उसे गुणवत्ता से समझौता किये बिना ग्राहकों की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला जाए।
इस अवसर पर वाराणसी के श्री प्रभास भी मौजूद थे जो बनारसी साड़ी के मास्टर बुनकर और डिजाइनर हैं। उन्होंने वाराणसी में कारीगरों के रहन-सहन का प्रत्यक्ष वर्णन किया और उनकी दैनिक चुनौतियों के बारे में बताया। एनएचआरडी के अध्यक्ष श्री कुमार ललित और रूमी फाउंडेशन के संयोजक श्री एम0ए0 खान ने भी इस अवसर पर अपनी बातें कहीं। कई प्रख्यात उद्यमियों, सिविल सर्वेंट, पेशेवर, कारपोरेट सीएसआर लीडर, शिक्षाविद् और छात्रों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।
पैनल के सुझावों और संस्तुतियों के साथ चर्चा के दौरान उत्पन्न सभी उपयुक्त विचारों को कवर करते हुए एक रिपोर्ट जल्दी ही उ0प्र0 पर्यटन के सहयोग से आयोजकों द्वारा संकलित की जाएगी और इसे आगे की कार्यवाही के लिए सरकार के समक्ष पेश किया जाएगा।
श्री मुजफ्फर अली ने उल्लेख किया कि इसी प्रकार के कार्यक्रम उ0प्र0 के अन्य शहरों में आयोजित करने की योजना बनाई जा रही है तथा इस कार्यक्रम के आगे के संस्करणों में मुरादाबाद और आगरा के शिल्प पर बनी बाकी दो लघु फिल्मों को भी दिखाने की योजना बनाई जा रही है।