दीपक मिश्र ने अखिलेश से पूछा, मेरा कसूर क्या है ?
लखनऊ: समाजवादी चिन्तक एवं समाजवादी चिन्तन सभा के अध्यक्ष दीपक मिश्र ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर शायराना अंदाज़ में पूछा है कि मेरा क़ुसूर क्या है?
गौरतलब है समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की अनुमति से प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने हरदोई के राजेश यादव, लखनऊ के मोहम्मद शाहिद और दीपक मिश्रा के अलावा नोएडा के पूर्व महानगर अध्यक्ष राकेश यादव और नोएडा के ही युवजन सभा के महानगर अध्यक्ष कल्लू यादव को तत्काल प्रभाव से समाजवादी पार्टी से निष्कासित कर दिया है|
प्रिय भाई अखिलेश,
क्रांतिकारी अभिवादन,
समाचार पत्रों से अवगत हुआ कि आपकी सहमति से मुझे समाजवादी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। क्यों और किसके दबाव में आपने निकाला है, अस्पष्ट है। कारणों का कहीं उल्लेख नहीं किया गया है।
‘‘मेरे जुर्म की जो चाहे सजा दो मुझको,
मेरा कसूर है क्या? इतना तो बता मुझको।।’’
लोकतंत्र व समाजवाद की कसौटी पर मेरे जैसे प्रतिबद्ध, ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ समाजवादी का निष्कासन गलत, आपत्तिजनक, अतिरंजित, अनावश्यक, दुःखद एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। मैंने 20 साल के सार्वजनिक जीवन में 20 रुपए और 20 ईंट भी घर-परिवार को नहीं दिया। इसके साक्षी आप स्वयं हैं। बहुजन समाज पार्टी के विरुद्ध हर जन संघर्ष में अग्रिम पंक्ति में रहा हूँ। कई बार निरपराध होते हुए भी कारागार की यातना सही किन्तु संघर्ष-पथ पर अडिग रहा। जालिम सरकार हटाने व समाजवादी सरकार बनाने के लिए मैंने जितना पसीना व स्याही बहाया है उतना तो आपके कई मंत्रियों, राज्य सभा सदस्यों, विधान परिषद सदस्यों एवं राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने पानी भी न पिया होगा। कारण न स्पष्ट होने के कारण पूँजीवादी दलालों एवं साम्प्रदायिक एजेण्टों के वर्ग द्वारा प्रचारित किया जा रहा है कि मैं भी अपनी सरकार में हुई लूट का हिस्सेदार रहा हूँ। आप मुख्यमंत्री थे, कृपया स्पष्ट करने का कष्ट करें कि पाँच साल की सत्ता के दौरान विचारधारा के प्रचार-प्रसार के अलावा मैंने कभी कुछ कहा? ठेका, पट्टा, स्थानान्तरण उद्योग, खनन जैसे धनोन्मुखी गतिविधियों से दूर रहा। यदि आपसे कभी कुछ मांगा हो तो सार्वजनिक करें ताकि लोक जीवन में मेरी शुचिता व ईमानदारी पर सवाल खड़ा करने वालों का मुंह बंद हो।
समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता व सचिव, समाजवादी युवजनसभा के राष्ट्रीय सचिव व प्रबुद्ध प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए एक्टिवा से चलता रहा। सरकार की बदौलत फारच्यूनर व स्कार्पियो से चलने वाले गैर-समाजवादी लोग जब मेरी कटिबद्धता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं, मन मर्माहत होता है।
अस्तु, आपसे आग्रह है कि मुझे सत्ता के दौरान जो भी आर्थिक लाभ दिया गया है, सार्वजनिक करें ताकि उसे लौटाकर मैं उऋण हो सकूँ। जहां तक मेरी जानकारी है मैंने कोई वित्तीय लाभ नही लिया।
मुझे निष्कासन के कारणो से अवगत न कराना अलोक तांत्रिक और पार्टी के संविधान का खुला प्रहसन है। सैद्धान्तिक रूप से यह कुछ ऐसा ही आत्मघाती व अन्यायकारी कदम है जैसा 10 जुलाई 1955 को महान समाजवादी चिन्तक राम मनोहर लोहिया को तत्कालीन तथा कथित समाजवादी दल ने निकालकर उठाया था। जिन लोगों ने षडयंत्र कर लोहिया को निष्कासित करवाया था बाद में वे सभी तत्कालीन सत्ताधारी दल में चले गए। इतिहासचक्र पुनः अपने को दोहरा रहा है। आप द्वारा मेरे जैसे समाजवादियों का निष्कासन करवा ‘‘पापी’’ सत्ताधारी दल की गोद में चले जायेंगे। आपने कई बार मुझसे राज पद लेने को कहा, मैंने यह सविनय अवज्ञा की कि जिन्हांने पार्टी को जीवन दिया है, मेरी जगह उन्हें राज पद दें। आज मेरी त्याग-भावना, सैद्धान्तिक प्रतिबद्धता, ईमानदारी, आस्था सबको आपकी उपस्थिति में अवमूल्यित, अपमानित, अवहेलित, कलंकित व लांक्षित होना पड़ रहा है। राजनीति की वीथिकाओं में आप इतने निर्मम व निष्ठुरहो जायेंगे, स्वप्न में भी नहीं सोचा था।
‘‘तलाक दे तो रहे हो गुरूर-ओ-कहर के साथ,
मेरा शबाब भी लौटा दो, मेरे महर के साथ।।’’
यहां तो महर भी आपके आसपास रहने वाले गैर-समाजवादी तत्वों की गिरोहबंदी ने जब्त कर लिया।
अस्तु मैं मनसा-वाचा-कर्मणा समाजवादी था हूँ और रहूँगा। मैंने कोई पार्टी विरोधी कार्य न किया, न ही करुँगा। आगे भी समाजवाद, सामाजिक सद्भाव, सामाजिक न्याय हेतु सतत संघर्ष करता रहूँगा। न दैन्यम्, न पलायनम्।
एक मित्र व सहयोगी के रूप में इतना आग्रह करूँगा कि उन ‘‘दीमकों’’ से सावधान व सचेत रहिए जिन्हें समाजवाद व समाजवादी सोच से कोई सरोकार नहीं है। जो ‘‘पद अथवा एम0पी0, एम0एल0ए0, मिनिस्टर बनने के लिए गैर-दलों का दामन छोड़कर समाजवादी पार्टी की छत्र-छाया में आ गए हैं। उन्होंने आपके इर्द-गिर्द ऐसी गिरोहबंदी करदी है कि समाजवादी सोच के कार्यकर्ता आप तक नहीं पहुँच पा रहे हैं। वे ही गत वर्षां से मिल रही अनवरत पराजयों के कारण व कारक हैं’’। मेरा एक और आग्रह है कि मेरे साथ-साथ उन ‘‘तथाकथित गिरोह’’ की भी जांच कराई जाय जिन्होंने अपनी सरकार रहते ताकत का दुरूपयोग कर अनाप-शनाप अंधाधुंध धनबटोरा, कोठियां व कारों की कतार खड़ी की।समाजवादी सरकार की साख को घटाया व धूल-धूसरितकिया।