डाॅ0 अम्बेडकर का पूरा संघर्ष समाज और राष्ट्र के सशक्तिकरण के लिए रहा: रमापति शास्त्री
लखनऊ । सशक्त राष्ट्र के लिए समरस-सशक्त समाज की आवश्यकता है ।डाॅ0 अम्बेडकर का पूरा संघर्ष समाज और राष्ट्र के सशक्तिकरण के लिए रहा । सामाजिक समरसता एवं शिक्षा में समानता के प्रबल पक्षधर बाबा साहब ने ऐसे स्वाभिमानी राष्ट्र की संकल्पना को यथार्थ रूप दिया जिसमें समाज के सभी वर्गो, धर्मो व जातियों को समान अधिकार व अवसर प्राप्त हो।
उक्त बातें राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश एवं व्यापार प्रशासन विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में मालवीय सभागार लखनऊ विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रिय संगोष्ठी डॉ आंबेडकर एवं सामाजिक समरसता' पर मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री समाज कल्याण, अनुसूचित जाती एवं जनजाति कल्याण, रमापति शास्त्री ने कही । उन्होंने आगे कहा की डाॅ0 अम्बेडकर एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे जिसमें किसी भी प्रकार की सामाजिक एवं आर्थिक असमानता न हो। उनका दृढ विश्वास था कि जाति व वर्ण व्यवस्था का उन्मूलन किये बिना सामाजिक व आर्थिक समानता संभव नहीं है। समानता के बिना देश व समाज का विकास संभव नहीं है।
मुख्य वक्ता अखिल भारती राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री श्री ओम पाल सिंह ने कहा की अम्बेडकर का दर्शन समाज को गतिमान बनाए रखने का है। व्यक्ति की महानता उसके कर्म से सुनिश्चित होती है न कि जन्म से। वंचितों को सशक्त करने और उन्हें शिक्षित करने का उनका अभियान एक तरह से हिंदू समाज और राष्ट्र को सशक्त करने का अभियान था। सदियो से अभिशप्त, वंचित-दलित वर्ग के उत्थान के लिए संघर्ष करने व अस्पृश्यों और दलितों के उद्धार के लिए दलितों में से ही नेतृत्व उभारने का मार्ग डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर ने दिखाया। डाॅ0 अम्बेडकर के प्रयासों का ही फल है कि शिक्षा के प्रसार में जातिगत-भौगोलिक व आर्थिक असमानताएं बाधक न बन सके, इसकी व्यवस्था संविधान व नीति निर्देशक तत्वों में की गई। शिक्षा अधिकार का क्रियान्वयन भी इन्हीं का परिणाम हैं। उनके अनुसार शिक्षा का बड़ा उद्देश्य लोगों में नैतिकता व जनकल्याण की भावना विकसित करना होना चाहिए। पीढियों को तराशने का कार्य करने वाले शिक्षकों का कर्तव्य है कि बाबा साहब के शैक्षिक व सामाजिक विचारों को समाज में स्थापित करने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाये जिससे समरस-सशक्त एवं समृद्व भारत का निर्माण संभव हो सके।
अध्यक्षता करते हुए विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के संरक्षक पद्मश्री ब्रह्मदेव शर्मा भाई जीने कहा की भारतीय संस्कृति को समृद्ध और श्रेष्ठ बनाने में सबसे बड़ा योगदान वंचित समाज के लोगों का है। डाॅ अम्बेडकर का सपना था कि समतामूलक समाज हो, शोषण-मुक्त समाज हो। उनके समूचे जीवन और चिंतन के केंद्र में यही एक सपना की जातिविहीन, वर्गविहीन, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विषमताओं से मुक्त समाज। अम्बेडकर इस देश के संघर्षशील और परिवर्तनकारी समूहों के हर महत्वपूर्ण सवाल पर प्रासंगिक है इसी कारण वह विकास के लिए संघर्ष के प्रेरणास्रोत भी बन गए हैं।
विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्रो अनिल कुमार सिंह ने कहा की बाबा साहब का मत था कि शिक्षा ही राष्ट्र र्निमाण कर सकती है। संस्कारयुक्त शिक्षा और सम्पूर्ण पीढ़ी को संस्कारित करने की जिम्मेदारी शिक्षक की ही है, उन्होने पाठ्यक्रमों का स्वरूप, विद्यार्थियों के दायित्व, शिक्षको की पा़त्रता, शिक्षण संस्थाओं का उत्तरदायित्व, सभी के लिए शिक्षा व्यवस्था आदि विषयों पर चिन्तन कर समयानुकुुल अनिवार्यता पर बल दिया। शिक्षा से ही व्यक्ति-समाज व राष्ट्र का समग्र विकास हो सकता है। उन्होंने ऐसी शिक्षा नीति विकसित करने पर बल दिया जो बौधिक विकास के साथ चरित्र निर्माण कर विद्यार्थी को सुयोग्य नागरिक बनाये। बाबा साहब के शैक्षिक विचारों के व्यापक प्रचार-प्रसार एवं आचरण में उतारने की आवश्यकता है। तभी भारत सही मायनों में समतामूलक, समरस विकसित राष्ट्र बन सकता है।
विशिष्ट अतिथि बैसवारा विकास समिति के अध्यक्ष श्री मुकेश सिंह ने कहा की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था व नीति में जो भी कमियाॅं है, उनका निवारण बाबा साहब के विचारों में खोजा जा सकता है और सामाजिक और आर्थिक अवसरों की समानता वाले समाज की रचना की जा सकती है।