‘पीके’ का राज्यमंत्री दर्जा खतरे में !
नई दिल्ली: नीतीश कुमार के सलाहकार और बिहार विकास मिशन के कर्ताधर्ता 'पीके' यानी प्रशांत किशोर मुश्किलों में फंसते दिख रहे हैं. पीके यानि प्रशांत किशोर कहां हैं ये सवाल बीजेपी नेता सुशील मोदी बार-बार नीतीश कुमार से पूछ रहे हैं, लेकिन अब इस मामले में एक नया मोड़ आ गया है.
बिहार के ही राजेश कुमार जायसवाल नाम के शख़्स ने प्रशांत किशोर के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में 'क्यो वारंटो' दाख़िल किया है. इसमें संविधान की कुछ धाराओं का ज़िक्र कर ये सवाल उठाया गया है कि आख़िर प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री के परामर्शी सलाहकार के पद पर क्यों बहाल किया गया, और उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा क्यों दिया गया ?
अगर प्रशांत किशोर को ये पद दिया भी गया तो नियम ये कहता है कि अगर छह महीने तक मंत्री परिषद का कोई सदस्य अगर मंत्रिमंडल के काम में भाग नहीं लेगा तो उन पर कार्रवाई होनी चाहिए.
राजेश के मुताबिक प्रशांत किशोर जब से बिहार विकास मिशन के कर्ताधर्ता बने हैं और राज्य मंत्री का दर्जा उन्हें मिला है तब से वो एक बार भी मंत्रीपरिषद के किसी भी मीटिंग में शामिल नहीं हुए हैं और ना ही बिहार विकास मिशन के कार्यालय में आए हैं. ऐसे में उन्हें वेतन और भत्ता क्यों दिया जा रहा है.
क्यो वारंटो से मतलब ऐसे वारंट से होता है जो कोई भी टैक्स पेयर यानी सरकार को टैक्स देने वाला व्यक्ति हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर कर सकता है. धारा 32 के तहत राजेश ने ये रिट सुप्रीम कोर्ट में दायर की है. इसमें कार्रवाई संभव है और पीके की नियुक्ति पर सवाल खड़े करते हुए उन पर नोटिस किया जा सकता है.