रतन टाटा के अंतिम दर्शन के लिए उमड़ी भीड़
रतन टाटा के पार्थिव शरीर को मुंबई के नरीमन प्वाइंट स्थित राष्ट्रीय प्रदर्शन कला केंद्र में रखा गया है. उनके अंतिम दर्शन के लिए जबरदस्त बीड़ उमड़ी है. बड़ी संख्या में लोग उन्हें श्रद्धांजिल देने पहुंचे हैं. देश और दुनिया के तमाम दिग्गजों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है. उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है. शाम 4 बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. बता दें कि रतन टाटा का बुधवार रात को निधन हो गया है. मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में 86 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली थी. आज वर्ली के पारसी श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी.
रतन टाटा का कहना था कि ‘मैं सही फैसले लेने में विश्वास नहीं रखता. मैं फैसले लेता हूं और फिर उन्हें सही साबित करता हूं…’ उन्होंने ऐसा ही किया. एक ऐसा वक्त भी था जब कारोबार जगत के दिग्गजों ने रतन टाटा की समझ पर सवाल उठाए, लेकिन वो अपने फैसलों पर डटे रहे. साल 2000 में उन्होंने अपने से दोगुने बड़े ब्रिटिश ग्रुप टेटली का अधिक ग्रहण किया. तब उनके फैसले पर सवाल उठाए गए थे, लेकिन अब यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी है. दूसरी बार सवाल तब उठे जब उन्होंने यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी कोरस को खरीदा, लेकिन इस बार भी रतन टाटा ने सबको प्रभावित किया.
रतन टाटा का मानना था कि धैर्य और दृढ़ता के साथ चुनौतियों का सामना करना चाहिए क्योंकि ये सफलता की आधारशिला हैं. उन्होंने इसका उदाहरण भी पेश किया. नैनो से पहले उन्होंने 1998 में टाटा मोटर्स की भारतीय बाजार में उतारा. यह भारत में डिजाइन हुई पहली कार थी. इसे सफलता नहीं मिली तो फोर्ड मोटर कंपनी को बेचने का फैसला लिया गया. बातचीत के दौरान फोर्ड ने रतन टाटा पर ताना मारा कि अगर वो उनकी इंडिका खरीदती है तो भारतीय कंपनी पर बहुत बड़ा अहसान करेगी.
इस बात से रतन टाटा और पूरी टीम नाराज हुई. डील कैंसिल कर दी गई. 10 साल बाद हालात बदले. फोर्ड अपने बुरे दौर में पहुंची. उन्होंने जगुआर और लैंडरोवर बेचने का फैसला लिया. रतन टाटा ने 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर में इन दोनों ब्रांड का अधिग्रहण किया. हालांकि, इस अधिग्रहण पर कारोबार क्षेत्र के विश्लेषकों ने सवाल उठाए और कहा, यह डील टाटा ग्रुप के लिए बोझ साबित होगी. टाटा ग्रुप की टाटा कंसल्टेंसी सर्विस का इस समूह की तरक्की में विशेष योगदान रहा, इसने कंपनी को पिछड़ने नहीं दिया.
तमाम चुनौतियों, विवाद और उपलब्धियों के बीच टाटा समूह उन कारोबारी ग्रुप में शामिल रहा जिन पर भारतीयों का विश्वास कभी डगमगाया नहीं. फिर चाहें कोविड के दौर में 1500 करोड़ रुपए की राशि से की गई मदद हो या फिर मरीजों के लिए अपने लग्जरी होटल का इस्तेमाल करने देना.
सफलता की राह में रतन टाटा का सामना विवादों से भी हुआ. साल 2010 में विवाद तब पैदा हुआ जब लॉबिस्ट नीरा राडिया और उनकी टेलिफोनिक बातचीत लीक हुई. उस टेप में नीरा की नेताओं, टॉप बिजनेसमैन और पत्रकारों से बातचीत शामिल थी. साल 2020 में टाटा समूह के ज्वैलरी ब्रांड तनिष्क का एक विज्ञापन जारी हुआ जिसको लेकर दक्षिणपंथियों ने सवाल उठाए और ट्रोल किया गया. इसके बाद विज्ञापन को वापस लेना पड़ा. 2016 में एक और विवाद उठा जब रतन टाटा ने 24 अक्तूबर, 2016 को टाटा समूह के अध्यक्ष साइरस मिस्त्री को एक घंटे से भी कम समय के नोटिस पीरियड पर बर्ख़ास्त कर दिया. आज रतन टाटा हम सबके बीच नहीं हैं लेकिन उनके उपलब्धियों और देश की तरक्की में योगदान हो हमेशा याद रखा जाएगा.