सत्य नारायण मदन

भाजपा नेता और उप मुख्यमंत्री श्री सम्राट चौधरी तथा जनता दल (यू) के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद श्री संजय झा ने कल यह बयान दिया था कि बिहार में बाढ़ की समस्याओं के निदान के लिए पांच नये बैराज बनाये जाएंगे। कोसी नदी पर सुपौल जिला के डगमारा में, बागमती नदी पर सीतामढ़ी जिला के भेंग के पास, पूर्वी चंपारण के अरेराज में गंडक नदी पर और संभवतः पूर्णिया में महानंदा नदी पर नया बराज बनाया जाएगा। एक और कहां और किस नदी पर बनेगा, यह किसी को मालूम नहीं है।

बैराज बनाने से संबंधित दोनों नेताओं का बयान पूरी तरह हास्यास्पद और लोगों को बरगलाने वाला है। बयान देने से पहले इन नेताओं को यह जान लेना चाहिए था कि बैराज किस लिए बनाया जाता है।

बैराज का मुख्य उद्देश्य सिंचाई होता है न कि बाढ़ नियंत्रण। नदियों में बैराज बनाकर सिंचाई के लिए नहरें निकाली जाती हैं तथा नहर से वितरणियां बनाकर खेतों में पानी ले जाया जाता है। अगर बैराज से बाढ़ का निदान होता है तो कोसी के दोनों के कैनालों पूर्वी कोसी मुख्य केनाल (43.47 किलोमीटर लंबा) और पश्चिमी कोसी मुख्य कैनाल (91.82 किलोमीटर लंबा) के गेटों को क्यों नहीं खोला गया ताकि कोसी नदी का पानी कैनाल के रास्ते निकल सके और तटबंध पर दबाव कम हो, तो शायद टूटने की भी संभावना नहीं होती । लेकिन ऐसा नहीं किया गया। क्योंकि बिहार की नदियों में जब बाढ़ आती है तो बड़े पैमाने पर गाद भी आता है। इसलिए सिंचाई कैनाल में इसे बहाने पर कैनाल में सिल्ट भर जाने और पानी के तेज बहाव से कैनाल भी ध्वस्त हो जाएगा। यही कारण है कि कोसी के दोनों कैनालों का गेट बाढ़ और तटबंध टूटने के खतरे के बावजूद नहीं खोला गया। इसलिए उप मुख्यमंत्री श्री सम्राट चौधरी और सांसद श्री संजय झा ग़लत बयानी कर रहे हैं और हंसुआ के बियाह में खुरपी के गीत गा रहे हैं।

कोशी, गंडक और बागमती नदियों ने बाढ़ सुरक्षा और बाढ़ प्रबंधन के नीतीश कुमार के सारे दावों की पोल खोल दी है। हाल के कई वर्षों में मानसूनी वर्षा औसत से भी कम होती रही है। इसलिए मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार का बड़बोलापन छुप जाता रहा है। लेकिन इस बार नेपाल के क्षेत्र में देर से एकाएक भारी मानसूनी बारिश होने से वे बेनकाब हो गये हैं। नौ बड़े तटबंध और तीन सुरक्षा तटबंध दो दिनों के अंदर दिनांक 29 और 30 सितंबर 2024 को टूटे हैं।

उप मुख्यमंत्री श्री सम्राट चौधरी, जल संसाधन मंत्री श्री विजय कुमार चौधरी और सांसद श्री संजय झा नीतीश सरकार का ढोल पीटने और एक दूसरे की पीठ खुजलाने में व्यस्त हैं। जबकि अब तक करीब बारह लाख की आबादी तटबंध टूटने की वजह से तबाही की चपेट में है। 22 जिलों के सौ से अधिक प्रखंड बाढ़ग्रस्त हो चुके हैं और बाढ़ का पानी नीचले इलाकों में फैलता जा रहा है। लगभग तीन लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसलें बर्बाद हो चुकी हैं । लाखों लोगों के भविष्य उजड़ गये है।

बागमती नदी का तटबंध पांच जगहों पर टूटा है । सीतामढ़ी के बेलसंड प्रखंड के मधकौल गांव के पास बागमती का दाहिना तटबंध 35 मीटर तक, इसी जिले में बागमती का दाहिना तटबंध बलुआ पंचायत के खरौउवा गांव में रात नौ बजे टूट गया।शिवहर जिला के तरियानी छपरा स्थित मध्य विद्यालय के पास 29 तारीख की रात को बागमती का तटबंध 20 फीट तक टूट गया, तरियानी प्रखंड में तीन जगहों पर एवं बेलवा में सुरक्षा तटबंध में पानी का रिसाव हो रहा है। दरभंगा जिले के किरतपुर प्रखंड के भूबोल गांव में कोसी नदी कि पश्चिमी तटबंध रात दो बजे 10 फीट तक टूट गया जिसका दायरा अब बढ़कर एक हजार मीटर लंबा हो गया है। पश्चिम चंपारण में एक सुरक्षा तटबंध ध्वस्त हो गया। पश्चिम चंपारण के बगहा – एक प्रखंड में गंडक नदी पर बना चंपारण तटबंध खैरटवा गांव के पास में एक जगह पर टूट गया। इसी जिले में सिकटा प्रखंड के बलरामपुर में ओरिया नदी का सुरक्षा तटबंध भी ध्वस्त हो गया है। पूर्वी चंपारण के फुलवार उत्तरी पंचायत में दुधौरा नदी का दाहिना तटबंध 15 फीट तक टूट गया। कोसी में खिरदपुर और गौडाबोदाम के इलाक़े में लगभग आठ किलोमीटर लंबाई में बाढ का पानी तटबंध के उपर से तेज गति से छलकने लगा था लेकिन छह घंटे तक कोई अधिकारी नहीं पहुंचे। नतीजा स्थिति भयावह हो गई।
30 तारीख को भी चार जगहों पर तटबंध टूटे। पश्चिम चंपारण के नौतन में गंडक नदी का रिटायर्ड तटबंध और इसी जिले में गंडक नदी पर बना पीड़ी रिंग तटबंध घोड़हिया इमली ढाला के पास ध्वस्त हो गया। पूर्वी चंपारण के सुगौली में बूढ़ी गंडक नदी पर बना पीडी रिंग तटबंध करीब 30, फीट व हरनाही गांव के पास दुधौरा नदी का तटबंध 20 फीट तक टूट गया। मुजफ्फरपुर में बागमती नदी का सुरक्षा तटबंध टूट गया। मुजफ्फरपुर में के औराई प्रखंड के रामखेतारी गांव में लखनदेई नदी का बायां तटबंध टूट गया। शिवहर में बागमती नदी पर तटबंध में दस जगहों पर रिसाव हो रहा है। दरभंगा जिले के गोबराही गांव के निकट कमला बलान नदी का पूर्वी तटबंध था किलोमीटर टूट गया। जहां- जहां तटबंध टूटे हैं उसका दायरा भी बढ़ता गया है। इतनी भयावह स्थिति के बाद भी नीतीश सरकार बाढ़ सुरक्षा पर जो बयान दे रही है उसे बेशर्मी और डपोरशंखी के अलावा क्या कहा जा सकता है।

जल संसाधन मंत्री श्री विजय कुमार चौधरी का यह बयान हास्यास्पद है कि नेपाल में भारी वर्षा के कारण बिहार में तटबंध ट़ूट गए। कभी कहा जाता है कि नेपाल से पानी छोड़ा गया इसलिए स्थिति बिगड़ी है। श्री चौधरी जानबूझकर इस बात को कहने से कतरा रहे हैं कि तटबंधों की सुरक्षा और रखरखाव के नाम पर नीतीश सरकार में हो रही लूट इसके पीछे कारण है। स्वयं उनके बयान से साबित होता है कि तटबंधों के संवेदनशील और अतिसंवेदनशील स्थलों की निगरानी और रखरखाव में कोताही बरती गई है। कोसी में 1967 में 7 लाख 70 हजार क्यूसेक पानी आने का अधिकतम रिकॉर्ड है, तो इसे मानक मानकर बाढ़ सुरक्षा की तैयारी क्यों नहीं की गई। गंडक में भी अधिकतम मानक को नजरंदाज किया जाता रहा है। मुझे याद है कि संभवतः 2008 में नेपाल में कुसहा के पास कोसी नदी का दाहिना एफ्लक्स तटबंध टूट जाने से कोसी नदी की धारा बदल गई थी, उसी के दरम्यान एक बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बयान दिया था कि तटबंध टूटेगा, तो इसके लिए संबंधित इंजिनियर दोषी होंगे। तब तत्कालीन बिहार अभियंत्रण सेवा संघ के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री के बयान का कड़ा विरोध करते हुए कहा था कि तटबंध तो टूटेगा ही। इस बयान के पीछे उनका इशारा शायद ऊपर होने वाली नाजायज राशि की मांग की ओर था ।

श्री चौधरी से हम पूछना चाहते हैं कि नेपाल में भारी बारिश के लिए वहां की सरकार व लोग कैसे दोषी हैं। नेपाल सरकार के पास पानी रोकने और छोड़ने का कोई ढांचा भी नहीं है। नेपाल ऊपर पहाड़ पर अवस्थित है। इसलिए वहां पानी पड़ेगा तो स्वाभाविक रूप से वह बह कर नीचे बिहार में प्रवेश करता है। दूसरी बात यह है कि कोशी बैराज भले ही भारत (बिहार) – नेपाल की सीमा पर नेपाल की जमीन भीमनगर (सुनसारी जिला) में बना हुआ है। लेकिन उसका स्वामित्व, रखरखाव और नियंत्रण पूरी तरह भारत व बिहार सरकार का है। इसलिए बैराज से पानी नेपाल नहीं भारत व बिहार सरकार छोड़ती है। हमारा मानना है कि जल संसाधन मंत्री श्री विजय कुमार चौधरी अपनी नाकामी को छुपाने के लिए अनर्गल बयान दे रहे हैं।

हमारा मानना है कि तटबंधों ने बाढ़ जो नदियों का स्वभाव है, उसे विनाशकारी बनाया है। बिहार के 22 जिलों – सुपौल, दरभंगा, सहरसा, बेतिया, मोतिहारी, गोपालगंज, सारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, शिवहर, समस्तीपुर, किशनगंज, अररिया, पूर्णिया कटिहार, मधुबनी खगड़िया और भागलपुर के करीब बारह लाख की आबादी बाढ़ की चपेट में है। अब तक 20 लोगों के डूबने से मौत की खबर है। कई लापता हैं।

श्री संजय झा ने अपने बयान में यह भी कहा है कि तटबंधों के अंदर किसी को नहीं रहना है। मतलब बाढ़ की विभीषिका झेलने के लिए लोग दोषी हैं नीतीश सरकार नहीं। श्री झा का यह बयान भी कि लोग तटबंधों के बाहर रहें, बेतुका है और यह साबित करता है कि बिहार की संस्कृति – परंपरा से वे पूरी तरह कट गये हैं।

बिहार में नदियों के साथ रहने की लंबी सांस्कृतिक परंपरा रही है। यहां योरोप- अमेरिका की तरह फ्लड प्लेन की कोई अवधारणा नहीं है। योरोपीय अमेरिकी देशों की नदियों में गाद की समस्या नहीं है और आबादी का घनत्व भी बहुत कम है। इसलिए वहां नदियों के फ्लड प्लेन में लोग नहीं रहते हैं। लेकिन हमारे यहां बिल्कुल विपरीत स्थिति है। एक बात और पहले नदियां विनाशकारी नहीं थी। एंटी इकोलॉजिकल विकास नीति ने नदियों को विनाशकारी बनाया है। अगर श्री संजय झा चाहते हैं कि लोग तटबंधों के अंदर न रहें तो उन्हें उन तटबंध पीड़ितों का पुनर्वास करने से कौन रोका है। पिछले बीस साल से नीतीश सरकार काबिज है। 2008 में कोसी में जब कुशहा टूट हुआ था तो मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने पीड़ित परिवारों से वादा किया था कि सभी लोगों का बेहतर मकान और खेती की जमीन देकर पुनर्वास किया जाएगा। क्या हुआ आज तक । आज भी बाढ़ग्रस्त इलाकों में प्रशासन भूले भटके दिख जाता है।

जब से नीतीश जी मुख्यमंत्री बने हैं तब से उन्होंने वोट की राजनीति के तहत बाढ़ राहत की एक याचक संस्कृति विकसित की है। पुनर्वास नीति की जगह राहत की राजनीति पर जोर दिया है। लेकिन इस बार बाढ़ में नीतीश सरकार रंगेहाथ पकड़ी गई है।

सत्य नारायण मदन, संयोजक, लोकतांत्रिक जन पहल बिहार, पटना