लोहिया व दीनदयाल को ‘‘भारत-रत्न’’ दिया जाय
समाजवादी चिन्तक दीपक ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
समाजवादी चिन्तन सभा के तत्वावधान में समाजवादी बुद्धिजीवियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की बैठक सभा कार्यालय में हुई, जिसमें महान समाजवादी चिन्तक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, गोवा मुक्ति संग्राम व ‘‘बयालिस’’ की क्रांति के नायक डा0 राममनोहर लोहिया तथा ‘‘एकात्म मानवदर्शन’’ के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय को ‘‘भारत-रत्न’’ से विभूषित करने की मांग की गई। बैठक को सम्बोधित करते हुए समाजवादी चिन्तक एवं चिन्त सभा के अध्यक्ष दीपक मिश्र ने कहा कि लोहिया व दीनदयाल उपाध्याय ने राजनीति एवं लोकजीवन में कभी सत्ता के लिए सैद्धान्तिक प्रतिबद्धताओं से समझौता नहीं किया। दोनों राजपथ पर चलने वाले निस्पृह कर्मयोगी थे, जो जीवन पर्यन्त बिना कुटी के राजर्षि की तरह रहे। लोहिया की समाजवादी अवधारणाओं एवं दीनदयाल के एकात्म मानवदर्शन का ताŸिवक विश्लेषण किया जाय तो कई समानतायें मिलती हैं। दोनों फक्कड़, यायावर और सरस्वती के वरद् पुत्र थे। दोनों की अर्थनीति, स्वदेशी की मूलभावना पर आधारित थी। भाषा के प्रति दोनों का दृष्टिकोण एक जैसा था। यही कारण है कि मई 1963 में हुए उपचुनाव में डा0 लोहिया अपना चुनाव छोड़कर जौनपुर सभा करने पहँुचे जहाँ संयुक्त विपक्ष की ओर से जनसंघ के अध्यक्ष पंडित दीनदयाल चुनाव लड़ रहे थे। सर्वविदित है कि लोहिया जी के विरुद्ध कांग्रेस ने कद्दावर केन्द्रीय मंत्री, लेखक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बालकृष्ण विश्वनाथ केसकर को मैदान में उतारा था। 12 अप्रैल 1964 को भारत-पाक महासंघ पर डा0 लोहिया व दीनदयाल जी ने संयुक्त वक्तव्य जारी किया था। एक संवाद के दौरान लोहिया जी ने स्वदेशी, भाषा-विमर्श, देशज अर्थनीति के आधार पर कहा था कि ‘‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय किसी भी समाजवादी से अधिक समाजवादी हैं। दीनदयाल की ‘‘पाॅलिटिकल डायरी’’ की प्रस्तावना ‘‘समाजवाद’’ व ‘‘चिद्विलास’’ के लेखक आचार्य सम्पूर्णानन्द ने लिखी थी।
श्री मिश्र ने बताया कि नानाजी देशमुख व अटल बिहारी बाजपेयी अधिकांशतः दोनों चिन्तकों के मध्य वैचारिक विनिमय के वाहक होते थे। लोहिया के समाजवाद, जयप्रकाश की सम्पूर्ण क्रांति व दीनदयाल की एकात्म मानव दर्शन के बुनियादी गुणों व भावभूमि में काफी समानतायें परिलक्षित हैं।
यह वर्ष लोहिया की महाप्रयाण-अर्द्धसदी और दीनदयाल की जन्मशताब्दी का साल है, ऐसे में दोनों को ‘‘भारत-रत्न’’ देने से नए विमर्श का सूत्रपात होगा। लोहिया व दीनदयाल ने देश के लिए जितना किया व राष्ट्र को जितना दिया है, उसका प्रतिदान देश उन्हें नहीं दे सका।
चिन्तन सभा की कार्यकारिणी ने सर्वसम्मति से लोहिया व दीनदयाल को ‘‘भारत-रत्न’’ दिलाने के लिए अभियान चलाने पर जोर दिया। चिन्तन सभा इसके पूर्व भी लोहिया व दीनदयाल के लिए ‘‘भारत-रत्न’’ की मांग कर चुकी है। लोहिया व दीनदयाल के समकालीन व शिष्यों तक को भारत-रत्न मिल चुका है, लेकिन दोनों को नहीं दिया गया। यह चूक सुधारने का समय आ चुका है।
चिन्तन सभा की स्पष्ट मान्यता है कि दोनों को ‘‘भारत-रत्न’’ देने से सादगी, ज्ञान, ईमानदारी, वैचारिक प्रतिबद्धता, लोकसंघर्ष की रचनात्मक राजनीति के प्रति नई पीढ़ी का आकर्षण बढ़ेगा।
बैठक का संचालन समाजवादी बौद्धिक सभा के संचालक अभय यादव व अध्यक्षता प्रख्यात इतिहासशास्त्री प्रो0 पंकज कुमार ने की। समाजवादी चिन्तक श्री मिश्र ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी को को पत्र लिखकर दोनो विभूतियों को राष्ट्र की तरफ से विभूषित कर कृतज्ञता ज्ञापित करने का आग्रह किया है।