लखनऊ
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नजूल संपत्ति कानून को कल विधानसभा में पारित करने की कड़ी निंदा लखनऊ बचाओ संघर्ष समिति ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में की है। समिति का यह मानना है कि यह कानून उत्तर प्रदेश में कारपोरेट घरानों और रियल एस्टेट के लिए लैंड पूलिंग करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा लाया गया है। इससे उत्तर प्रदेश के आम नागरिक, व्यापारी और गरीब लोग बुरी तरह तबाही का शिकार होंगे। दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार पूरे तौर पर रियल स्टेट का फैसिलिटेटर बनकर काम कर रही है। दो-दो बार इन्वेस्टर सबमिट करने और ग्रांउड ब्रेकिंग सेरेमनी करने के बावजूद उत्तर प्रदेश में हालत बहुत बुरी है यहां पूंजी निवेश नहीं हो रहा है उल्टा प्रदेश में बैंकों में जमा लोगों की पूंजी कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली जैसे राज्यों की ओर पलायन करके जा रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार ने रियल एस्टेट कंपनियों को आकर्षित करने के लिए पहले 7 मार्च 2024 को नजूल संपत्ति अध्यादेश लाने का काम किया और अब मानसून सत्र में उसने नजूल संपत्ति कानून बना दिया है। हालत इतनी बुरी है कि सत्ता पक्ष और सत्ता पक्ष के सहयोगी दलों के विधायकों के विधानसभा के सदन में विरोध के बावजूद सरकार इसे लागू करने पर आमादा है।

इस कानून के बनने के बाद उत्तर प्रदेश में नजूल भूमि पर किसी भी प्राइवेट व्यक्ति या संस्था को लीज नहीं दी जाएगी। पूर्व में जो लोग नजूल भूमि पर बसे हैं और उन्हें लीज प्राप्त है उनके लीज का नवीनीकरण नहीं होगा। जिन्होंने किराया जमा किया है पर लीज अवधि समाप्त हो गई है उनका नवीनीकरण नही होगा। जिन्होंने किराया नहीं जमा किया है और जिनकी नजूल भूमि पर कोई लीज नहीं है उन सब को बेदखल करने की कार्यवाही की जाएगी। इतना ही नहीं इस कानून के जरिए सरकार ने नजूल संपत्ति पर अधिकार के लिए जो भी मुकदमे विभिन्न न्यायालयों में चल रहे हैं उन्हें समाप्त करने की घोषणा की है। सभी लोग जानते हैं कि नजूल भूमि वह भूमि है जिस पर अंग्रेजों का कब्जा था और अंग्रेजों के जाने के बाद उसका कोई मालिकाना ना होने के कारण उस जमीन को जहां जो बसा था वह उसे जमीन का मालिक हो गया। सन 1948 और सन 1952 में विभिन्न राजस्व कानून के जरिए सरकार ने यह घोषणा की थी कि जो जहां बसा है वह उसका मालिक हो जाएगा। अब सरकार आजादी के अमृत काल में इन जमीनों पर मालिकाना अधिकार की बात खत्म कर रही है। इसके खिलाफ लोगों में गहरा रोष है और लखनऊ बचाओ संघर्ष समिति जनता की इस भावना के साथ है। समिति सरकार से मांग करती है कि तत्काल प्रभाव से वह नजूल संपत्ति कानून को वापस ले और विधानसभा में विधायकों द्वारा इस प्रवर समिति को भेजने और इस पर सभी स्टेकहोल्डरों से बात करने की मांग के साथ है।

प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त करने वालों में लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा, सपा की मेयर प्रत्याशी रहीं वंदना मिश्रा, सीपीएम की राज्य सचिव मंडल सदस्य मधु गर्ग , वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डाक्टर रमेश दीक्षित, ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रदेश महासचिव दिनकर कपूर, कांग्रेस के शहर अध्यक्ष डॉक्टर शहजाद आलम, इप्टा के राकेश, भाकपा माले के रमेश सिंह सेंगर, सीपीआई से कांक्ति मिश्रा, जागरूक नागरिक मंच की कात्यायनी व सत्यम, अकबरनगर के नेता इमरान राजा, समाजवादी पार्टी के पूर्व सचिव शर्मिला महाराज, युवा मंच के शानतम, एपवा की मीना सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता नाईस हसन, ट्रांस गोमती निवासी संघर्ष समिति के संयोजक राकेश मणि पांडे, मोहम्मद सलीम, किसान सभा के प्रवीन सिंह, डीवाईएफआई के दीप डे।