मुम्बई। काॅरुगेटेड बाॅक्स (दफ्ती के डिब्बों) उद्योग को दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ क्राफ्ट पेपर मिल्स द्वारा दो महीनों के छोटे से समय में ही चार बार कीमतों में जबरदस्त वृद्धि कर दी गई है और वहीं दूसरी तरफ हर महीने क्राफ्ट पेपर मिल्स बंद भी होती जा रही है। क्राफ्ट पेपर की कीमतों में वृद्धि ने न सिर्फ वित्तीय व्यवहारिकता पर बुरा प्रभाव डाला है बल्कि लगातार मिलों के बंद होने से काॅरुगेटेड बाॅक्स उद्योग के लिए कच्चे माल की आपूर्ति भी प्रभावित हुई है। क्राफ्ट पेपर मिल्स के अनुसार इस मूल्यवृद्धि के लिए बढ़ा हुआ इनपुट खर्च जिम्मेदार है। बाॅक्स उद्योग का निवेदन है कि हर माह मिल्स की बंदी नहीं की जानी चाहिए, जो पिछले तीन माह में तीन बार बंदी की गई है और अप्रैल माह में एक बंदी फिर से की जानी है, लेकिन इस निवेदन का मिल्स पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा है।

श्री किरीट मोदी, प्रेसिडेंट, इंडियन काॅरुगेटेड केस मैनुफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईसीसीएमए), देश व्यापी इकाई ने बताया कि जब तक बाॅक्स निर्माता, जिनमें बड़े एफएमसीजी ब्रांड मालिक शामिल हैं, तीव्रता से न्यूनतम 23 प्रतिशत मूल्यवृद्धि नहीं करेंगे, तब तक उद्योग की यूनिटें बंदी की मार झेलती रहेंगी। इसी समय पेपर मिल्स से बंदी न करने का निवेदन किया गया है, ताकि बाॅक्स की स्टाॅक-आउट की स्थिति पैदा न हो। यदि यह तेजी से नहीं किया जाएगा, तो इस बात की अपार संभावनाएं हैं कि आवश्यक जन उपयोग के सामान का उत्पादन बाॅक्स की कमी के चलते रुक जाएगा। वहीं दूसरी ओर श्री जी. के. सरदाना, प्रेसिडेंट, फेडरेशन आॅफ काॅरुगेटेड बाॅक्स मैनुफैक्चरर्स आॅफ इंडिया (एफसीबीएम) ने सभी संबंधित सरकारी एजेंसियों से निवेदन किया कि वो क्राफ्ट पेपर मिल्स एसोसिएशन को बंदी रोकने और आपूर्ति का स्मूथ फ्लो सुनिश्चित करने के निर्देश देकर बाॅक्स उद्योग को संकट की स्थिति से निकालने में मदद करें। माननीय प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया का सपना देखा है। क्राफ्ट पेपर मिल्स बंद होने से निर्मित कृत्रिम कमी से यह सपना खतरे में पड़ जाएगा। इससे इस उद्योग में संलग्न कर्मचारी बेरोजगार होकर पलायन करने को मजबूर हो जाएंगे। इस सभी स्थितियों को बाॅक्स यूनिटों के बचाव के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स द्वारा आगे आकर रोका जा सकता है।