दिल जीतना सीखो जी!
(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
पता है, अपने मोदी जी एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों के दिलों पर क्यों राज करते हैं? मीडिया को गोदी में बैठा के? — ना। विपक्ष को डरा के? — ना। जो डराने से भी नहीं डरें, उन विरोधियों के पीछे ईडी, सीबीआइ लगा के? — ना। पेशेवर विरोध करने वालों, आंदोलनजीवियों वगैरह को यूएपीए में जेल में पहुंचा के? — ना। कोर्ट-कचहरी से लेकर इलेक्शन कमीशन तक सभी संस्थाओं से अपनी हां में हां मिलवा के? — ना। देश की सीमाओं को पहले से सुरक्षित बना के? — ना। बेरोजगारी घटा के? — ना। महंगाई कम कर के? — ना। पब्लिक के लिए जीना आसान बना के? — ना। झूठे वादों से लोगों को ललचा के भी, ना। मोदी जी एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों के दिलों पर राज करते हैं — दिल जीत कर। देखा नहीं, कैसे हम सब के देखते-देखते, मोदी जी ने राष्ट्रीय लोकदल वाले जयंत चौधरी का दिल जीत लिया। अखिलेश, इंडिया वाले सब हाथ मलते रह गए। किसान-विसान सब नहीं, नहीं करते ही रह गए। मोदी जी ने फकत एक भारत रत्न से, बैर मानने वाले का भी दिल जीत कर दिखा दिया और खुद छोटे चौधरी की जुबां से कहलवा लिया — अब किस मुंह से ना कहूं! यह होती है दिल जीतने वाले की ताकत!
हमें पता है, पेशेवर विरोधी इसमें भी सौदेबाजी सूंघ कर निकाल देंगे। आखिर, दलीलों में तो इनसे कोई जीत ही नहीं सकता है। कहेंगे कि यह देश के सबसे प्रसिद्ध किसान नेता का सम्मान नहीं, उसके सम्मान की खरीद-फरोख्त कर के, वास्तव में उसका अपमान करना है। ऐसे सौदे के सम्मान से तो बड़े चौधरी बिना भारत रत्न के ही खुश होते, कम-से-कम दिल्ली की गद्दी के आगे न झुकने की अकड़ तो रहती। और यह भी कि चौधरी चरण सिंह का सम्मान कर के क्या होगा, जब उन किसानों की कोई सुनवाई ही नहीं है, जिनकी बात उन्होंने जिंदगी भर की और जिनका मसीहा वह खुद को मानते थे। यह बड़े चौधरी के नाम का कैसा जिंदा रखा जाना है, जब उनके अपने किसान अगर आत्महत्या नहीं कर रहे हैं, तो किसानी छोड़ रहे हैं। यह भी कि पोते को चवन्नी बनकर पलटना मंजूर था, तो पलट जाता, पर उसे दादा की इज्जत चवन्नी करने का क्या हक है, वगैरह। पर ये सब दिमाग की दलीलें हैं। और सच पूछिए तो ये दिमाग की क्या, पेट की दलीलें हैं। पेट की दलीलों के चक्कर में फंसे किसान सुना है कि फिर दिल्ली आ रहे हैं, एमएसपी का कानून मांगने। पर मोदी जी पेट-वेट के चक्करों में नहीं पड़ते, सीधे दिल पर निशाना लगाते हैं। और जयंत चौधरी तो बाकायदा एलान कर चुके हैं — दिल जीत लिया!
इससे कोई यह न समझे कि इस सीजन में मोदी जी भारत रत्न देकर, दिल सिर्फ जाटों का या यूपी के किसानों का ही दिल जीतने निकले हैं। मोदी जी का दिल इतना छोटा नहीं है कि लोकसभा की इतनी-सी सीटों के इंतजाम से ही भर जाए। पिछले महीने ही मोदी जी बिहार के ओबीसी का दिल भी तो जीत आए थे, पिछड़ों के मसीहा कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर। तब मोदी जी ने कर्पूरी ठाकुर के चाहने वालों का दिल ऐसा जीता, ऐसा जीता कि, नीतीश बाबू एक बार फिर उन्हें अपना दिल दे बैठे। और दिल के साथ, दहेज में बनी-बनाई सरकार भी लेकर चले आए। जयंत बाबू की तरह, अपनी पार्टी तो खैर लेकर आए ही। वैसे दोनों भारत रत्नों में एक बात कॉमन है। भारत रत्न का गुलाब देकर, मोदी जी ने जिन पार्टियों का दिल जीता है, मोदी जी पहले भी उनका दिल जीत चुके थे। उनका दिल है कि एक जगह टिकता ही नहीं है। पर मोदी ठहरे दिल जीतने के माहिर, फिर-फिर दिल जीत ही लाते हैं, चुनाव के लिए टैम पर।
लेकिन, इसका मतलब यह भी नहीं है कि मोदी जी की दिल जीतने की भारत रत्न कला सिर्फ बाहर वालों के लिए ही है। मोदी जी ने कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिंह के बीच, भारत रत्न कला से आडवाणी जी का दिल भी तो जीत कर दिखाया है। सच्ची बात तो यह है कि इस कला से भी सीधे दिल तो आडवाणी जी का ही जीता गया है, बाकी दोनों के तो असली-नकली उत्तराधिकारियों का ही दिल जीतकर मोदी जी को काम चलाना पड़ा है। आडवाणी का दिल जीतने का मामला वैसे भी इन सब से अलग था। आडवाणी जी का दिल, मोदी जी ने पहले शिष्य बनकर जीता था। फिर गुरु दक्षिणा में आडवाणी जी को पीएम इन वेटिंग की कतार से उठाकर सीधे मार्गदर्शक मंडल में पहुंचाकर उनका दिल जीता। और अब जब वह अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में जाने लायक नहीं रहे, मोदी जी ने एक बार फिर उनका दिल जीत लिया, भारत रत्न देकर। जब आडवाणी जी के योगदान से देश में इतना कुछ टूट और बन रहा है, एक आखिरी बार आडवाणी जी का दिल जीतना तो बनता ही था। आखिरकार, हिंदू राष्ट्र के शुभंकर तो वही होंगे। और निर्माता…। जाहिर है कि जो करना है, वह तो अब दिल जीतने वालों को ही करना है।
और अगर दिल बड़ा हो, तो जीतने वाले के लिए भारत रत्न से भी दिल जीतने की कोई सीमा नहीं है। फिर दक्षिण वालों का कठोर दिल जीता नहीं भी जाए, तब भी मोदी जी ने अपनी ओर से कोशिश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सो नरसिम्हा राव भी भारत रत्न हुए, क्योंकि आंध्रा वालों को भी मोहब्बत का संदेश पहुंचाना है। एमएस स्वामिनाथन भी भारत रत्न हुए, आखिरकार तमिलनाडु वालों से भी प्यार जताना है। और यही अंत थोड़े ही है। बाल ठाकरे, बीजू पटनायक, प्रकाश सिंह बादल, देवी लाल आदि, आदि और भी कितने ही महापुरुष हैं, जिन्हें भारत रत्न देकर, उनके उत्तराधिकारियों की पार्टियों का दिल जीता जा सकता है। और हां, सावरकर जी, गोडसे जी, गोलवलकर जी को भी। मोदी जी ने अभी तो दस साल में सिर्फ दस भारत रत्न बांटे हैं। हर साल के तीन के हिसाब, पूरे बीस तो अभी भी रहते हैं और वह भी दूसरे कार्यकाल में ही। चुनाव तक मोदी जी हर दिल जीत कर दिखाएंगे। बेपनाह मोहब्बत है, मोदी जी दिल में। उनके दिए भारत रत्नों की गिनती तो तीस से ऊपर भी निकल सकती है। राहुल गांधी फालतू मोहब्बत, मोहब्बत करते यहां-वहां भटक रहे हैं। मोदी जी से सीखें, दिल जीतना।
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)