कोच्चि: विश्वविद्यालयों में विचारों की आजादी की वकालत करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि छात्रों को और टीचरों को परिचर्चा और बहस करना चाहिए ना कि अशांति को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने साथ ही कहा कि यह देखना दुर्भाग्यपूर्ण है कि छात्र हिंसा और अशांति के भंवर में फंसे हुए हैं।

उन्होंने कहा कि असहिष्‍णु भारतीय के लिए भारत में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। उन्‍होंने कहा कि भारत पुराने समय से ही अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता, सोच और भाषण का पक्षधर रहा है। यह बात उन्‍होंने कोच्चि में छठे केएस राजामोनी लेक्‍चर के दौरान कही।

उन्‍होंने कहा कि देश में आलोचना और सहमति के लिए जगह होनी चाहिए। उन्‍होंने कहा कि जब एक महिला के प्रति घिनौना व्‍यवहार करते हैं तो हमारी सभ्‍यता की आत्‍मा को चोट पहुंचती है। बच्‍चों और महिलाओं के प्रति ऐसी सोच रखने वाले लोगों के खिलाफ किसी भी समाज का एसिड टेस्‍ट होना चाहिए। राष्‍ट्रपति ने कहा कि हमें सामूहिक रूप से देशभक्ति और राष्‍ट्रीय उद्देश्‍य के बारे में सोचना होगा। इसके लिए सामूहिक रूप से सभी को काम करना होगा। उन्‍होंने देश भर के विश्‍वविद्यालयों में रहे घटनाक्रम पर चिंता जताई और कहा ऐसा देखना दुखद है।