देश में एकबार मंडरा रही है अघोषित आपातकाल की छाया: अखिलेश यादव
टीम इंस्टेंटखबर
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि देश में आपातकाल लगे 47 वर्ष बीत चुके है पर आज भी 25 जून 1975 की याद सिहरन पैदा कर देती है। रातों रात विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियों के साथ प्रेस पर सेंसरशिप बिठा दी गई थी। स्वतंत्र भारत में आपातकाल लागू होते ही लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनकर नागरिकों की आजादी को कुचल दिया गया था।
आज फिर देश पर अघोषित आपातकाल की छाया मंडरा रही है। अमृृतकाल में भी लोकतंत्र की हत्या जारी है। आर्थिक विषमता, सामाजिक अन्याय का बढ़ना जारी है। अमीर ज्यादा अमीर, गरीब और ज्यादा गरीब होता जा रहा है। असहिष्णुता और नफरत ने सामाजिक सद्भाव को छिन्न भिन्न कर दिया है। संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है। किसानों-नौजवानों की आवाज को कुचला जा रहा है। बेरोजगारी में वृद्धि जारी है। महिलाएं-बच्चियां सर्वाधिक अपमान की यंत्रणाएं भोग रही हैं।
भारत की आजादी की लड़ाई लड़ते समय स्वातंत्र्य वीरोें ने जो सपने देखे थे, उनका क्या हुआ? वर्तमान सत्ताधारियों ने भी सत्ता के दुरूपयोग के सभी रिकार्ड तोड़ दिए हैं। आजादी के बाद संविधान की अनदेखी कर लगाए गए आपातकाल के विरोध में लोकतंत्र रक्षक सेनानियों के बलिदान को भी भुलाया जा रहा है।
आज देश विभ्रम के दोराहे पर खड़ा है। एक और लोकतांत्रिक, पंथ निरपेक्ष तथा समाजवादी मूल्यांे से प्रतिबद्धता है तो दूसरी ओर एकाधिकारी, फासिस्ट मनोवृृत्ति के तानाशाह है। संविधान की मूल भावना के साथ नागरिक अधिकारों को बचाने तथा समाज को बांटने से रोकने में अवरोध डालने वाली प्रवृृत्तियों पर अंकुश लगाना होगा।
समाजवादी पार्टी स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों एवं आदर्शों के लिए संघर्षरत है। संविधान को बचाने के लिए अहिंसात्मक, वैचारिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए जिन्होने संघर्ष करते हुए जेल में यातना भोगी उनके सम्मान में उन्हें सम्मानजनक पेंशन देने के लिए समाजवादी सरकार ने अधिनियम बनाया जिससे तमाम लोकतंत्र रक्षक सेनानियों को जीवन-संबल मिला। उनके आश्रितों के लिए भी समाजवादी सरकार ने व्यवस्था की। बसों में यात्रा सुविधा के साथ उनका अंतिम संस्कार सरकारी सम्मान के साथ करने की भी व्यवस्था की।
महात्मा गांधी जी ने समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के कल्याण का सपना देखा था। समाज और राष्ट्र की नींव की मजबूती के लिए भय-भ्रष्टाचार मुक्त नागरिक अधिकारों की सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों की बहाली के लिए प्रतिबद्धता यही एक रास्ता है।