लखनऊ: बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने आज लोकसभा में पेश केन्द्रीय बजट में देश के करोड़ों ग़़रीबों, मज़दूरों व किसानों आदि की घोर अनदेखी करने का आरोप लगाते हुये कहा कि इन वर्गों की ग़रीबी व बेरोज़गारी एवं महंगाई की मार को दूर करने के मामलें में भाजपा व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की नीति व नीयत दोनों ही देशहित की जनहितैषी नहीं लगती है।

मायावती जी ने आज जारी अपने बयान में कहा कि काफी अपरिपक्व तौर पर लिये गये ’नोटबन्दी’ के फैसले का दुष्प्रभाव ना केवल देश की अर्थव्यवस्था पर ही पड़ा है बल्कि इससे रोजगार पर भी काफी ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ा है। केन्द्र सरकार के ’नोटबन्दी’ के फैसले से प्रथम दृष्टया बेरोज़गारी बढ़ी है। कामकाजी लोग वापस अपने घर लौटने को मजबूरी हुये हैं, परन्तु ’नोटबन्दी’ के तत्काल पड़े बुरे प्रभाव से पीड़ित देश की 90 प्रतिशत ग़रीबों, मज़दूरों, किसानों, छोटे व्यापारियों व अन्य मेहनतकश ईमानदार आमजनता को तत्काल समुचित राहत व सुविधा देने की व्यवस्था इस बजट में नहीं की गयी है। इससे आने वाले समय में रोजगार की समस्या हर स्तर पर काफी विकट बनी रहने वाली है तथा खासकर गाँवों व ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी व बेरोज़गारी की समस्या और ज़्यादा बढ़ेगी जो अनेकों और प्रकार की समस्याओं को जन्म देगी।

साथ ही, मोदी सरकार के बारे में देश में जो आम धारणा है कि यह सरकार बड़े-बड़े पूंजीपतियों व धन्नासेठों की सरकार है और उन्हीं के हितों के लिये नये-नये कानून व नियम बनाती रहती है, वह उसकी अपनी नीति व नीयत एवं उसकी अब तक की कार्यशैली के अनुभव पर ही आधारित है तथा केवल कुछ छोटे करदाताओं को आयकर में थोड़ी राहत देने से इस भाजपा सरकार पर से यह दाग व धब्बा मिटने वाले नहीं है। केन्द्र की सरकार बड़े-बड़े पूंजीपतियों व धन्नासेठों के अरबो-खरबों रूपये का बैंक कर्ज माफ करने में आख़िर इतनी लालायित क्यों रहती है, यह सरकार की ऐसी गलत नीयत व ख़ास नीति का पर्दाफाश करता है।

मायावती ने कहा कि छोटे आयकरदाताओं को जो थोड़ी राहत दी गयी है और जिसका डंका पीटकर भाजपा राजनीतिक व चुनावी लाभ लेने का प्रयास करेगी, वह वास्तव में ़खासकर वेतनधारी मध्यम-वर्गीय लोगों की आँखों में धूल झोंकने वाला है।

असल में इस बजट के माध्यम से सरकार एक हाथ से देकर अपने सैकड़ों डिजिटल हाथों से उपकर आदि के रूप में सरकार वसूल कर लेगी। इस प्रकार वास्तव में जितना छूट सरकार देगी उससे कहीं ज्यादा लोगों की हर ख़रीदारी पर सेवाकर आदि के रूप में वसूल कर लेगी और आमजनता अन्ततः घाटे में ही रहेगी।
इसके अलावा, ग्रामीण व सामाजिक क्षेत्र के विकास हेतु केन्द्र सरकार को जितनी अधिक चिन्ता करनी चाहिये थी उतनी चिन्ता नहीं करके उसकी अनदेखी करते हुये सम्बंधित क्षेत्र के बजटों में आपेक्षित इजाफा नहीं किया गया है।

साथ ही, शिक्षण संस्थाओं आदि की आजादी अर्थात अनकी स्वायत्ता की बात बजट भाषण में कही गयी है, परन्तु इस सरकार के सम्बंध में अब तक अनुभव यह बताता है कि सरकार का ग़लत हस्तक्षेप हर क्षेत्र में काफी ज्यादा बढ़ा है और संवैधानिक संस्थाओं की काम करने की आज़ादी पहले से कहीं ज्यादा प्रभावित हुई है, जिसका ताज़ा उदाहरण नोटबन्दी का ही अत्यन्त जनपीड़ादायी मामला है जिसका फैसला मोदी सरकार ने बिना पूरी तरह से सोच-विचार किये काफी अपरिपक्व तरीके से लेकर उस फैसले को रिजर्व बैंक की मार्फत आमजनता पर थोप दिया।

वैसे तो आमजनता की निगाह में बजट की असली पहचान जनहित व जनकल्याण के साथ-साथ महंगाई, ग़रीबी व बेरोज़गारी आदि दूर करने में सफलता के आकलन से होती है, बड़ी-बड़ी घोषणाओं व आश्वासनों से नहीं, और इन मामलों में मोदी सरकार का पिछले लगभग तीन वर्षों का अनुभव देश की आमजनता की ज़रूरतों व आशाओं के अनुरूप बिल्कुल भी नहीं रहा है।

कुल मिलाकर मोदी सरकार व भाजपा द्वारा हालाँकि इस बजट के माध्यम से चुनावी राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास है, परन्तु उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड व पंजाब सहित पाँच राज्यों की आमजनता मोदी सरकार को उसकी गलत नीतियों व गलत कार्यां की सजा जरूर देगी, ऐसा साफ तौर पर प्रतीत होता है।