अखिलेश-माया में सपनों की लड़ाई
तौक़ीर सिद्दीक़ी
सपा प्रमुख और बसपा सुप्रीमो किसी ज़माने में बुआ और बबुआ के रिश्ते में बंधे हुए थे, लेकिन इन दोनों के बीच आजकल सपनों की लड़ाई चल रही है। बुआ नाराज़ हैं कि अखिलेश कौन होते हैं उन्हें यह बताने वाले कि वह राष्ट्रपति बनें, पीएम बने या सीएम। मैं चाहे ये बनूँ, मैं चाहे वो बनूँ मेरी मर्ज़ी। बात सही है बबुआ जी उन्हें क्यों सलाह दे रहे हैं पीएम बनने की या राष्ट्रपति बनने की. वैसे बहन जी कल ही राष्ट्रपति बनने से साफ़ इंकार कर चुकी हैं। अखिलेश फिर भी नहीं मान रहे हैं, लगातार सुझाव पर सुझाव दिए जा रहे हैं.
बहन जी भी कहाँ तक बर्दाश्त करतीं, आज ट्वीटर के तीरों की बौछार कर दी. अखिलेश को आइना दिखा दिया कि जो खुद इतनी पार्टियों का समर्थन लेकर भी दोबारा सीएम बनने का सपना पूरा नहीं कर सका और लोकसभा आम चुनाव में बीएसपी से गठबंधन करके खुद 5 सीटें ही जीत सका वो बीएसपी की मुखिया को कैसे पीएम बना पायेगा? मायावती ने स्पष्ट किया कि वह चाहे सीएम बने या पीएम, उनका मकसद हमेशा दलितों, पिछड़ों और उपेक्षित वर्ग के हितों के लिए काम करना है.
मायावती और अखिलेश में सपनों की यह चिकचिक पिछले दो दिनों से राजनीतिक जगत का मनोरंजन कर रही है. पहले अखिलेश ने राष्ट्रपति का मुद्दा उठाकर मायावती को छेड़ा, जवाब में मायावती ने भी कहा कि वह अखिलेश के दोबारा सीएम बनने के सपने को किसी भी हाल में पूरा नहीं होने देंगी। वह चाहते कि राष्ट्रपति बनकर मैं उनके रास्ते से हट जाऊं लेकिन मैं ऐसा होने नहीं दूँगी।
अखिलेश ने बुआ जी को फिर छेड़ा और कहा कि अगर गठबंधन जारी रहता तो बसपा और डॉ भीम राव अंबेडकर के अनुयायी देख सकते थे कि कौन प्रधानमंत्री बनता. मायावती का भड़कना भी लाज़मी था, सो फिर भड़क गयी और बात सपनों को पूरा करने तक पहुँच गयी. सपनो की इस लड़ाई में मायावती का आज किया हुआ एक ट्वीट काफी मज़ेदार है, बहनजी ने कहा जो पिछले हुये लोकसभा आमचुनाव में, बी.एस.पी. से गठबन्धन करके भी सपा खुद 5 सीटें ही जीत सकी, तो फिर वो बी.एस.पी. की मुखिया को कैसे पीएम बना पायेंगे? यह ट्वीट करने से पहले वह शायद 2014 का लोकसभा चुनाव भूल गयीं जब बसपा का पूरी तरह सफाया हो गया था, 20 सीट से सीधा 0. यह तो साइकिल के साथ का ही कमाल था कि हाथी को ढोने में उसका कचूमर भले निकल गया लेकिन बसपा को 0 से 10 पर पहुंचा दिया और खुद 23 से पांच पे आ गयी. अब बहिनजी की एहसान फरामोशी देखिये, बजाय एहसान जताने के बबुआ को ताने मार रही हैं. यह अखिलेश की मेहरबानी थी कि बसपा से गठबंधन कर उसे संजीवनी दी. हालाँकि विधानसभा में बसपा का एकबार फिर 2014 जैसा हाल हो गया और बहनजी इसका ज़िम्मेदार अखिलेश को ही मानती हैं. उन्हें भाजपा में दलित वोट जाने का इतना अफ़सोस नहीं हुआ जितना कि साइकिल पर मुसलमानों के चढ़ने का हुआ. बुआ जी की यह सारी खुन्नस इसीलिए सामने आ रही है और बबुआ जी छेड़ छेड़कर तमाशा देख रहे हैं. इस सारी तू तू मैं मैं में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के पद ऐसे लग रहे हैं जैसे किसी शोरूम सजी हुई चीज़ें जिन्हें जो चाहे जाकर खरीद ले. बहुत बड़े पद हैं यह कुछ तो लिहाज़ करो.