लाल टोपी का ख़ौफ़
तौक़ीर सिद्दीक़ी
उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल है. आज प्रदेश में दो स्थान चर्चा में थे, मेरठ और गोरखपुर। गोरखपुर में मोदी जी ने अपने ही अंदाज़ में लाल टोपी वालों को खतरा बताया और लोगों को सावधान रहने को कहा तो मेरठ से जवाब आया कि क्रांतिकारी लाल रंग की टोपियां ही इस बार भाजपा को सत्ता से बाहर करेंगी। हालाँकि प्रदेश में अभी भी चुनाव को कई महीने शेष हैं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के शिलान्यास, लोकार्पण, योजनाओं के नामकरण और नवीनीकरण के बहाने सरकारी चुनावी दौरों में तेज़ी आ चुकी है और चुनाव की अधिसूचना जारी होने तक सरकारी खर्च वाले यह चुनावी दौरे ऐसे ही जारी रहेंगे।
वैसे प्रधानमंत्री मोदी ने लाल टोपी के बहाने समाजवादी पर भले ही कई आरोप लगाए हों, सत्ता का लालची बताया हो (मज़ाक लगा न आपको), माफियाओं का हिमायती कहा हो, और तो और आतंकियों का समर्थक भी करार दिया हो, लेकिन अपने सम्बोधन में वह जाने अनजाने इस बात को भी मान गए कि लाल टोपी वाले खतरनाक हैं. मतलब उनके मुंह से सच्चाई निकल ही आयी कि भाजपा के लिए लाल टोपी वाले सबसे बड़ा खतरा हैं. हालाँकि मोदी जी इस बात का हमेशा ख्याल रखते हैं कि विरोधियों के सामने उनकी कोई कमज़ोरी न खुले मगर लाल टोपी के बहाने राज़ खुल ही गया. लाल टोपी की बढ़ती लोकप्रियता का उन्हें एहसास है तभी तो दिल्ली की बैठक में सांसदों को भी वार्न किया था कि बदल जाओ वर्ना जनता बदल देगी।
इधर मेरठ में उमड़े जनसैलाब से अखिलेश गदगद दिखे और भाजपा पर खूब हमले किये। एकबार फिर चिलमजीवियों का ज़िक्र किया और भाजपा के सफाये की बात कही. चुनावी सभाओं में उमड़ती भीड़ को अगर सत्ता की ओर बढ़ने का एक संकेत मानें तो यक़ीनन 22 में बदलाव वाले नारे में दम दिख रहा है. बात सिर्फ भीड़ की नहीं है, चुनावी सभाओं में साधन संपन्न पार्टियां भीड़ इकठ्ठा कर सकती हैं लेकिन देखने वाली बात यह होती है कि भीड़ आ रही है या लाई जा रही है और इस बात का अंदाज़ा लगाना कोई मुश्किल नहीं होता कि यह मर्ज़ी की भीड़ है या ज़बरदस्ती की. वैसे मीडिया के ज़रिये आप सबको पता चल ही जाता होगा कि भीड़ के लिए सरकारी सुविधाओं का इस्तेमाल कहाँ किया जा रहा है. खैर यह कोई बड़ी बात नहीं, सभी सत्ताधारी पार्टियां सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल करती हैं.
भीड़ की ही बात करें तो आज प्रदेश में दो भीड़ें थीं, एक सरकारी और एक गैरसरकारी। यक़ीनन दोनों ही भीड़ों की तस्वीरें आप लोगों ने देखी होंगी और फ़र्क़ भी साफ़ नज़र आया होगा। इस मामले में सौ प्रतिशत जीत तो मेरठ की दिख रही है. भीड़ दिखाने के लिए कैमरे के एंगल भी कई प्रकार के होते हैं, पर किसी भी एंगल से गोरखपुर को मेरठ पर बढ़त मिलती नहीं दिखी।
बात फिर लाल टोपी की. तो मेरे हिसाब से मोदी जी ने लाल टोपी का मुद्दा उछालकर समाजवादियों को एक बूस्टर डोज़ लगा दी है, हालाँकि आधिकारिक रूप से अखिलेश ने अभी तक कोरोना की एक भी डोज़ नहीं लगवाई है. तो बंधुओं! लाल टोपी इस चुनाव में मतदान तक अब चर्चा में ज़रूर रहेगी, जैसे कभी चाय चर्चा में थी. अब देखना है कि भाजपा के लिए आने वाले समय में लाल टोपी का खतरा कितना और बढ़ेगा वैसे खौफ तो अभी से झलक रहा है.