घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने
तौक़ीर सिद्दीक़ी
एक कहावत है घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने, यह कहावत कभी समाजवादी पार्टी के सबकुछ समझे जाने वाले और अब वहां से दरबदर किये गए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रमुख शिवपाल यादव पर बिलकुल सही बैठती है. शिवपाल यादव आजकल सामाजिक परिवर्तन के लिए यात्रा पर हैं. इस यात्रा के दौरान जगह जगह भाषण देना पड़ता है, कुछ ऐसा बोलना पड़ता है कि जिससे जनता खुश होकर वोट बैंक बन जाय. बस जनता को खुश करने और अपना वोटर बनाने के चक्कर में पूरे यूपी के चाचा ने प्रदेश के सभी स्नातकों को पांच-पांच लाख रूपये बांटने की घोषणा कर दी. साथ में शर्तें लागू वाली बारीक अक्षरों की लाइन भी जोड़ दी.
ज़ाहिर सी बात है ऐसे वादे सरकार बनने के बाद ही पूरे किये जाते हैं. चाचा को शायद ये आईडिया प्रियंका गाँधी के उस बयान से मिला जिसमें उन्होंने बेटियों को स्मार्टफोन और स्कूटी बांटने की बात कही थी, हालाँकि शर्तें वहां भी लागू थीं. वैसे वह वादा नहीं प्रियंका की प्रतिज्ञा थी, दूसरे नंबर वाली. बाकी प्रतिज्ञाओं की घोषणा वह कल यानि 23 अक्टूबर को बाराबंकी में करेंगी जहाँ वह तीन प्रतिज्ञा यात्राओं को हरी झण्डी दिखाकर रवाना करने वाली हैं.
खैर बात चाचा शिवपाल की हो रही थी. चाचा इन दिनों बड़ी उधेड़बुन में हैं, तमाम जतन कर डाले मगर गठबंधन के लिए भतीजा घास नहीं डाल रहा है इसीलिए सामाजिक परिवर्तन यात्रा लेकर लोगों से भतीजे की शिकायत करने निकल पड़े हैं, हालाँकि उम्मीद अभी भी नहीं छोड़ी है क्योंकि भतीजे ने पूरी तरह इंकार भी नहीं किया और हर बार सम्मान करने की बात कहकर गठबंधन के सवाल को टाल देता है. इस वक़्त तो हालत यह है कि चाचा डाल डाल तो भतीजा पात पात है. बिलकुल गुरु गुड़ रह गया और चेला शक्कर बन गया वाली बात.
अब चाचा को समझ में नहीं आ रहा कि किया क्या जाय. खुद भले ही कुछ न हों मगर छोटे दलों से गठबंधन की बातें कर अपना आत्मविश्वास बढ़ाये हुए हैं. ऐसे में उन्होंने सोचा कि बेज़मीन हो चुकी कांग्रेस जब बेटियों को शर्तें लागू होने वाली लाइन के साथ स्मार्टफोन और स्कूटी बांटने की घोषणा कर सकती है तो क्यों न हम भी कुछ ऐसा करके ध्यान बटोरें। सो चाचा ने एक कदम आगे बढ़कर बेटियों के साथ बेटों को भी शामिल कर लिया और कर दी पांच-पांच लाख रूपये देने की घोषणा। न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी, न सत्ता मिलेगी न पैसे बांटने पड़ेंगे।
वैसे देखा जाय तो चाचा के साथ एक तरह से अन्याय हो रहा है, राजनीतिक महत्वाकांक्षा किस राजनेता की नहीं होती, सबका सपना सत्ता के सर्वोच्च पर पहुँचने का होता है. अगर चाचा ने यह सपना देखा तो कौन सा गुनाह किया। मगर सबके सपने सच नहीं होते यह चाचा को एहसास भी हो चूका है, इसलिए वह शर्मिंदा हैं , भतीजे को चाहिए कि वह उन्हें और शर्मिंदा न करे, आखिरकार वह चाचा हैं.