समाजवादी पार्टी के लिए नया साल धमाकेदार ढंग से शुरू हुआ। तख्ता पलट हुआ, निष्कासन का दौर शुरू हुआ और आगे यह झगडे कानून के दर पे जाएंगे । मतदाता और देश के आम नागरिक उहापोह और असमंजस में हैं कि 25 साल पुरानी इस पार्टी के किस धड़े को असली समझा जाय? किसे असली मुखिया समझा जाय? पूर्व चीफ इलेक्शन कमिश्नर एस वाई कुरैशी कहते हैं कि सपा के असली-नकली की लड़ाई का फैसला होने में तीन-चार महीने का वक्त लग सकता है। तब तक सत्ता संघर्ष का मुख्य हवन यानी विधान सभा चुनाव हो चुका होगा।

कहना न होगा कि आगे की कानूनी लड़ाई का केन्द्र भी मुलायम सिंह यादव ही होंगे। अगर उन्होंने बागी गुट के फैसलों को चुनाव आयोग में चुनौती दी तभी उस पर कोई फैसला आ सकेगा क्योंकि पार्टी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही इस तरह के राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने का अधिकार होता है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के इनकार करने पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी राष्ट्रीय अध्यक्ष को नोटिस देकर ऐसे अधिवेशन बुला सकता है लेकिन पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव ने इन दोनों स्थितियों की अवहेलना कर अधिवेशन बुलाया था, इसलिए कानूनी पचड़े में इसे अवैध साबित करना मुलायम गुट के लिए आसान हो सकता है।

रविवार के राष्ट्रीय अधिवेशन से पहले मुलायम सिंह ने पत्र लिखकर कार्यकर्ताओं से अपील की कि वो अधिवेशन में शामिल न हों। उसके बाद दोबारा पत्र लिखकर मुलायम सिंह ने अधिवेशन को अवैध करार दिया और उसमें लिए गए फैसले को गैर कानूनी ठहराया। मुलायम ने पलटवार करते हुए रामगोपाल यादव को तीसरी बार पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। लगे हाथ 5 जनवरी को पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन उसी जगह यानी लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में बुलाया है। गौरतलब है कि आज के अधिवेशन में अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है जबकि शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष से हटा दिया गया है और अमर सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया है। मुलायम सिंह को पार्टी का मार्गदर्शक बनाया गया है।

अब सवाल यह उठता है कि अगर मुलायम सिंह ने आज के अधिवेशन को कानूनन चुनौती दी तो आगे क्या होगा? जानकारों के मुताबिक चुनाव आयोग सबसे पहले पार्टी का चुनाव चिह्न रिजर्व (फ्रीज) रख सकता है। ऐसी स्थिति में दोनों गुटों को बिना साइकिल के ही उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के लिए दौड़ लगानी होगी। दोनों गुटों को अस्थाई चुनाव चिह्न दिया जा सकता है। सूत्र बताते हैं कि अखिलेश गुट ने इसके लिए तैयारी पहले से कर रखी है। हो सकता है कि नए दौर के नेता साइकिल की जगह मोटरसाइकिल की सवारी कर लें या फिर भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पार्टी समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न का इस्तेमाल कर सकती है। उसके लिए कानूनी कोशिशें जारी हैं। इससे पहले शिवपाल कुछ विधायकों के समर्थन से अखिलेश की सरकार गिराने की कोशिश कर सकते हैं। वैसे परिस्थितियां देखते हुए ऐसा होना मुश्किल है, ऐसी स्थिति में अखिलेश बड़ा दांव खेलते हुए विधान सभा भंग करने की सिफारिश राज्यपाल से कर सकते हैं।