आज मिल सकती है ‘मॉर्डना’ की कोविड वैक्सीन के आयात को मंज़ूरी
नई दिल्ली: मुंबई स्थिति दवा कम्पनी ‘सिप्ला’ ने अमेरिकी दवा कम्पनी की ओर से वैक्सीन के इम्पोर्ट, मार्केटिंग संबंधी प्राधिकार के लिए आवेदन किया है. सूत्रों ने कहा है कि कंपनी ने सोमवार को आवेदन दिया था और आज उसको मंजूरी मिल सकती है. सिप्ला ने सोमवार को एक आवेदन दायर कर ‘मॉडर्ना’ के कोविड-19 रोधी टीके के आयात के लिए अनुमति मांगी थी, जिसमें DCGI के 15 अप्रैल और एक जून के नोटिस का हवाला दिया गया था. उस नोटिस में कहा गया था कि यदि टीके को ईयूए के लिए USFDA के जरिए इजाजत दी जाती है तो वैक्सीन को बिना ‘ब्रिजिंग ट्रायल’ के मंजूरी दी जा सकती है.
कोविड -19 से बचाव के लिए मॉडर्ना की वैक्सीन RNA (mRNA) पर निर्भर करती है, ताकि कोरोनवायरस के लिए प्रतिरक्षा पैदा करने के लिए सेल्स को प्रोग्राम किया जा सके. फाइजर के साथ ही ये वैक्सीन अमीर देशों की पसंद बनी रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना के खिलाफ वैक्सीन की डोज 90 फीसदी तक प्रभाव वाली है.
आंकड़ों की बात करें तो करीब 120 मिलियन अमेरिकी अब तक फाइजर और मॉडर्ना की डोज लगवा चुके हैं, इनमें से किसी में कोई बड़ी स्वास्थ्य समस्या सामने नहीं आई है. US और यूरोपीय संघ MRNA वैक्सीन को स्टोर करने पर ज़ोर दे रहे हैं. जापान भी जून के आखिर तक फाइजर की 100 मिलियन डोज सिक्योर करने की योजना पर काम कर रहा है. विशेषज्ञों कहते हैं कीमत ज्यादा होने, शिपिंग और स्टोरेज की समस्या के चलते कम आय वाले देशों में एमआरएनए बेस्ड वैक्सीन की उपलब्धता सीमित हो सकती है.
ह्यूस्टन में बायलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के एक वैक्सीन रिसर्चर डॉ. पीटर होटेज़ ने इसे महंगा बताते हुए कहा कि अभी (mRNA- आधारित शॉट्स) COVID-19 वैक्सीन के लेम्बोर्गिनी या मैकलेरेंस हैं. वहीं कोविड-19 वैक्सीनेशन पर सिंगापुर की विशेषज्ञ समिति ने डॉक्टर्स के लिखे गए एक ओपन लैटर के जवाब में कहा कि कोविड-19 रोधी ‘एमआरएनए’ वैक्सीन के लाभ उसके जोखिम से कहीं ज्यादा हैं. समिति ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि ‘एमआरएनए’ टीकों की दूसरी डोज युवा पुरुषों में ‘मायोकार्डिटिस’ और ‘पेरीकार्डिटिस’ के जोखिम में संभवत: मामूली वृद्धि कर सकती है.