माया के वोट बैंक के सहारे यूपी में डूबती नय्या को पार लगाने की कोशिश में भाजपा
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नए सियासी समीकरण और गठजोड़ पर बीजेपी ने काम करना शुरू कर दिया है. योगी सरकार ने यूपी में पिछड़ा वर्ग आयोग की कमान गैर-यादव ओबीसी को दी है तो अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति आयोग की बागडोर जाटव समुदाय की सौंपी है. इस तरह से बीजेपी ने मायावती को कोर वोटबैंक को अपने से जोड़ने की कोशिश की है तो गैर-यादव ओबीसी को अपने साथ सहेजने में जुट गई है. सूबे में बीजेपी अपने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को फिर से दोहराने की कवायद में है.
योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार विधानसभा चुनाव को देखते हुए कार्यकर्ताओं का उत्साह और मनोबल बढ़ाने के लिए निगम, आयोग, बोर्ड व निकायों के पदों की नियुक्तियों का काम शुरू कर दिया है. उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के गठन के बाद गुरुवार को उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग का गठन किया. इन दोनों ही आयागों के जरिए बीजेपी अपने वोटबैंक को मजबूत करती नजर आ रही है.
यूपी के पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष जसवंत सैनी को बनाया गया है जबकि उपाध्यक्ष हीरा ठाकुर और प्रभुनाथ चौहान को बनाया गया है. इसके अलावा जगदीश पांचाल, हरवीर पाल, चंद्रपाल खड़गवंशी, विजेंद्र भाटी, राकेश कुशवाहा, जगदीश साहू, रामरतन प्रजापति, बलराम मौर्य, रघुनंदन चौरसिया, शिवमंगल बियार, देवेंद्र यादव, डॉ त्रिपुणायक विश्वकर्मा, राम जियावन मौर्य, राधेश्याम नामदेव, धर्मराज निषाद, अरुण पाल, ममता राजपूत लोधी, घनश्याम लोधी, सपना कश्यप, रविंद्र राजौरा, शिवपूजन राजभर, गिरीश वर्मा, रमेश वर्मा निषाद, जवाहर पटेल और नरेंद्र पटेल को आयोग का सदस्य बनाया गया है.
बीजेपी ने ओबीसी आयोग की कमान सैनी समाज को कमान सौंपकर पश्चिम यूपी में एक बड़े ओबीसी वोटबैंक को मजबूती से जोड़े रखने की कवायद की है. सैनी समाज की उपजाति के तौर पर माने जाने वाली कुशवाहा, मौर्या और शाक्य समाज के अच्छी खासी संख्या में सदस्य बनाया है. इसके अलावा कुर्मी समुदाय भी अहमियत मिली है. इस आयोग में गैर-यादव ओबीसी को खास तवज्जो दी गई है, जिनमें पाल, लोध, निषाद और चौरसिया और गुर्जर सहित अति पिछड़ी जातीय के लोग शामिल हैं. 25 सदस्य कमेटी में महज एक यादव को शामिल किया गया है.
पिछड़ा वर्ग आयोग में हुई नियुक्तियों से साफ जाहिर होता है कि बीजेपी 2017 के फॉर्मूले पर 2022 की सियासी जंग फतह करना चाहत है. पिछले चुनाव में बीजेपी इन्हीं तमाम जातियों को मिलाकर 15 साल के सत्ता के वनवास को खत्म किया था और यही वजह है कि चुनावी रण में उतरने से पहले उन्हें खुश करने की कवायद में जुट गई है. यूपी के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं कि 2017 और 2019 में बीजेपी को जो बढ़त मिली थी, उसमें पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग का बहुत बड़ा समर्थन शामिल था. इससे पहले ये वर्ग सपा और बसपा के साथ हुआ करता था.
वहीं, योगी सरकार ने बुधवार को यूपी में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति आयोग में अध्यक्ष व उपाध्यक्षों के अलावा 12 सदस्यों को नामित किया गया है. यूपी एससी-एसटी आयोग का अध्यक्ष डॉक्टर रामबाबू हरित को बनाया गया है जबकि उपाध्यक्ष के पद पर मिथिलेश कुमार और रामनरेश पासवान को नियुक्त किया गया है. इसके अलावा गीता प्रधान, ओपी नायक, रमेश तूफानी सदस्य. राम सिंह वाल्मीकि, कमलेश पासी, तीजाराम सदस्य शेषनाथ आचार्य, अनीता सिद्धार्थ, राम आसरे सदस्य श्याम अहेरिया, मनोज सोनकर, श्रवण गोंड सदस्य, अमरेश चंद्र, किशनलाल, केके राज आयोग के सदस्य बनाए गए हैं.
सूबे में एससी-एसटी आयोग की कमान जिस तरह से बीजेपी ने दलित समुदाय के जाटव जातीय से आने वाले डॉ. रामबाबू हरित को सौंपी गई है. बसपा प्रमुख मायावती भी इसी जाटव समुदाय से आती हैं. दलित समुदाय में सबसे बड़ी आबादी इसी जाटव समुदाय की है, जो कुल आबादी का करीब 10 फीसदी के करीब और दलित आबादी का 50 फीसदी है. बसपा के गिरते सियासी ग्राफ और मायावती के सक्रिय न होने से बीजेपी अब जाटव समुदाय को साधने की कवायद में है. इससे पहले 2017 के चुनाव में गैर-जाटव दलित को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही थी और उसकी नजर बसपा के कोर वोटबैंक पर है.
उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों पर नजर डालें तो सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग है और उसके बाद दलित समुदाय का है. सवर्ण जातियां 18 फीसदी हैं, जिसमें ब्राह्मण 10 फीसदी हैं जबकि पिछड़े वर्ग की संख्या 39 फीसदी है, जिसमें यादव 12 फीसद, कुर्मी, सैथवार आठ फीसदी, जाट पांच फीसदी, मल्लाह चार फीसदी, विश्वकर्मा दो फीसदी और अन्य पिछड़ी जातियों की तादाद 7 फीसदी है. इसके अलावा प्रदेश में अनुसूचित जाति 22 फीसदी हैं और मुस्लिम आबादी 20 फीसदी के करीब है.
यूपी के सवर्णों को ज्यादातर देखें तो बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ा है. सूबे का मुस्लिम समाज मोटे तौर पर वे बीजेपी की तरफ नहीं जाते. ऐसे में बीजेपी ओबीसी और दलित समाज को सहेजने की कवायद शुरू कर दी है. इसी मद्देनजर बीजेपी ने आयोगों में दोनों ही समुदाय को खास तव्वजो देकर जातीय और क्षेत्रीय संतुलन बनाने की पूरी कोशिश की है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी का यह सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मला 2022 में हिट रहता है कि नहीं?