कोरोना वैक्सीन पर अफवाहों से बचें मुसलमान
मो. आरिफ़ नगरामी
कोरोना वायरस ने खुदा का क़हर बन कर पूरी दुनिया को अपनी गिरफत मेें ले लिया है। इस खतरनाक वायरस ने लाखों की जान ले ली। और लाखों लोग अस्पतालों और घरो में रह कर इस महामारी को पराजित देने की कोशिश कर रहे है। लगता है कि दुनिया को अभी निकट भविष्य में इस वायरस से छुटकारा हासिल होने वाला नहीं है। हमारे मुल्क हिन्दुस्तान में अभी इस महामारी की दूसरी लहर चल रहीं है। विशेषज्ञों ने तीसरी लहेर आने की बात कही है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मुल्क में कोरोना की तीसरी लहर दूसरी लहेर की ही तरह बेहद खतरनाक होगी । इन लोगों ने सम्भावना जाहिर किया है कि तीसरी लहेर 98 दिनों तक मुल्क में अपना कहेर बरपा कर सकती है। पहली और दूसरी लहेर के तर्जुबे से यह बात निकल कर सामने आयी है कि सिर्फ वैक्सीन ही इस महामारी से लोगों को महफूज रख सकती है। कोरोना की वैक्सीन को लेकर हमारे मुल्क में तरह तरह की बातेें हो रही हैं। सर्वे के मुताबिक हिन्दुस्तान मेें ज्यादातर लोग टीका लगवाने के हक में हैं और लगवा भी रहे हैं मगर मुल्क की एक बड़ी आबादी और खास तौर से हिन्दुस्तानी मुसलमान के जेहन में टीके को लेकर तरह तरह के सवालात हैं और इनमें टीके को लेकर एक झिझक भी है।
हिन्दुस्तानी मुसलमानों के कई हल्को मेें पहली लहेर में ही कोरोना वायरस को महामारी मानने से इन्कार कर दिया था। और उसकी वजह यह थी कि मुस्लिम बहुल इलाकों मेें एहतियात कम बरतने की बावजूद बीमारी न के बराबर थी। इसलिये इस पर तरह तरह के सवाल पैदा हुये । समाज का वह तब्का जो पहले से ही कई बीमारियों मेें पीड़ित था इस वायरस ने हमला कर दिया लेकिन कुछ अरसे के बाद मास्क समाजी दूरी और लाकडाउन लागो होने से महामारी काबू मेें आ गयी और हमने इस बारे से लापरवाही बरतनी शुरू कर दी । समझ लिया कि बुरे दिन गये और पुराने दिन वापस आ गये लेकिन वायरस ने जिन्दा रहने के लिये अपनी शक्ल बदली और उसने नौजवानों में दाखिले का रास्ता अपनाया उसके बाद दुनिया के साईंस दानों ने वायरस की शक्ल और फितरत बदलने पर शोध किया और उन्होंने अपनी रिसर्च में पाया कि वायरस अपनी शक्ल बदल रहा है। वायरस के शक्ल बदलने के बाद संक्रमण में तेज़ी आयी और वह लोग भी इसकी जद में आ गये जिनको कोई जानलेवा बीमारी नहीं थी और उनका इम्यून सिस्टम बेहतर था इसको वायरस की दूसरी लहेर का नाम दिया गया और इस दूसरी लहेर ने उन लोगों को भी प्रभावित किया जिन्होंने इसको महामारी और वायरस मानने से भी इन्कार कर दिया था। हिन्दुस्तानी मुसलमान जो पहली लहेर के बाद महामारी पर सवाल खड़े कर रहे थे। उन्होंने दूसरी लहेर को करीब से देखा और उसकी तकलीफ को महसूस किया और जब उनके करीबी इस महामारी से प्रभावित हुये तो उन्होंने अपने करीबियों को खोया तो उन्होंने वायरस और महामारी को तो स्वीकार किया और एहतियात भी बरती लेकिन टीके को लेकर अभी भी उनके जेहनों में सवाल है।
दूसरी लहर में वायरस सबको मनवा चुका है और अब तीसरी लहर की बातें शुरू हो गयी है। हिन्दुस्तान में स्वास्थ्य व्यवस्था और सुविधाओं पर बहुत सारे सवाल खडे हुये है। लेकिन अब दुनिया के साथ साथ हमारे मुल्क ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है मास्क, समाजी दूरी और हाथ धोना और लाकडाउन इस वायरस से महफूज रहने के सामयिक हल है। और टीकाकारी यानी वैक्सीनेशन ही एकमात्र स्थायी हल है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर मुल्क के हर शहरी को टीका नहीं लगा तो इस वायरस के फैलाव का खतरा बाकी रहेगा। क्योंकि वायरस को जिन्दा रहने और हमला करने के लिये रास्ता खुला रहेगा यानी टीकाकारी ही इस रास्ते को बंद करने का एकमात्र हल है। दूसरी लहर से जो बात साबित हुयी वह यह है कि वायरस ने उस आबादी पर हमला किया जो पिछली लहर में महफूज़ थे यानी नौजवान और मुसलमान। अब चॅूकि इस आबादी के भी एक बडे तबके को कोरोना हो गया है और एंटी बाडीज बनने के बाद इम्यून सिस्टम बेहतर हो गया है और ज्यादा उम्र के लोगो की एक बड़ी आबादी को भी टीका लग गया इसलिये यह वायरस अब उन लोगों के रास्ते आबादी में दाखिल हो गया जिसमें न तो कोरोना होने की वजह से ऐंटीबाडीज बनी है और न ही टीका लगा है। इस आबादी में शहर और देहात के वह लोग शामिल है। जिनको टीका नहीं लगा है। इसी को लेकर तीसरी लहर की सम्भावना ज़ाहिर की जा रही है इससे यह बात साबित हो गयी कि अगर हमने मल्क की बडी आबादी को टीका लगा दिया तो हम वायरस के दरवाजे बंद करने में कामयाब हो जायेंगे । बस छोटी मोटी खिडिकियां रह जायंगी जिनके जरिये आने वाले वायरस को हम मास्क, समाजी दूरी, हाथ धोने और छोटे लाकडाउन से दूर रख सकते है।
याद रहे कि वैक्सीन शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने का काम करती है और हम खुद अपने बच्चों को कई बीमारियों से लडने के लिये अलग अलग टीका लगवाते है। इन्हीं टीकों की तरह कोरोना का टीका भी है और यह भी एक हकीकत है कि साईंसदानों के मुताबिक ज्यादातर कोरोना के टीकों से बीमारी से बचाने की सलाहियत 90 फीसद है यानी कोरोना का टीका लगवाने के बाद 90 फीसद बचाव का यकीन तो किया जा सकता है यानी जानलेवा बीमारी की सम्भावना कम हो जाती है। इसके साथ ही यह भी एक हकीकत है कि टीके से न तो मर्दानगी और न ही जिंसी ताकत पर कोई असर पडता है और न ही यह कोई मुसलमानों के खिलाफ यहूदियों और ईसाईयों की साजिश है। क्योंकि एक तो उनकी एक बडी आबादी यह टीका लगवा रही है और दूसरा यह कि मुसलमानेां में भी औरतों और मर्द के लिये अलग अलग टीका तैयार करना और उनको लगाना मुमकिन नहीं है। इसके अलावा अरब देश यह टीका लगवाने में आगे आगे हैं। इसलिये ऐसी अफवाहों को आगे बढाने से परहेज करें। सोशल मीडिया पर एक अफवाह टीके के जरिये इन्सानी जेहन को अपने कब्जे में करने के लिये चिप लगाने से भी सम्बंधित है और वैसे आज के दौर में इन्सान का जेहन कब अपना रह गया है वह वही करता है जो बाजार की शक्तियां उससे करवाती हैं यह बात भी दिमाग़ में बिठा लीजिये कि आईन्दा कुछ सालों तक सफर के लिये टीका लगाने की रिर्पोट लाजिमी होगी। हज आप पर फर्ज है अगर उसका मौका मिलता है तो पास पोर्ट की तरह टीका भी ज़रूरी होगा इसी तरह अगर आप अपने रिश्तेदारों अजीजों और दोस्तों से मिलना चाहते है तो वैक्सीन जरूरी है। वैक्सीन अपने बच्चों के लिये है। मजहब के पर्दे के पीछे खड़े होकर खुद को धोखा न दीजिये और साईंस से मुंह न मोड़िये क्योंकि साईंस को इसका सही मुकाम न देकर हम बहुत नुकसान उठा चुके है। बहुत जलील हो चुके है। इसलिये कोरोना की महामारी को रोकने के लिये और उसके रास्तों को बंद करने के लिये टीका लगवाइये क्योंकि फिलहाल कोरोना से हिफाजत का वाहिद हल टीका है।