मदरसों में भी ऑनलाइन क्लासें शुरू करना बेहद ज़रूरी
डॉ० मोहम्मद नजीब कासमी सम्भली
कोरोना वबाई मर्ज के फैलाव के कारण विश्व में जगह जगह, विशेष कर हमारे देश में पिछले साल से कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिस कारण शैक्षिक कार्यक्रम अत्यन्त प्रभावित हैं। विश्वविद्यालयों, कालेजों और स्कूलों में शिक्षार्थी क्षात्र क्षात्रायें अपने घर बैठने पर मजबूर हैं। आनलाइन क्लासों से किसी हद तक उनके शैक्षिक नुकसानों की भरपाई की जा रही है, परंतु अनुभवों से ज्ञात हुआ कि आनलाइन क्लासें प्रोफेशनल कोर्सों के लिए तो लाभप्रद हैं, परंतु स्कूलों के छोटे छोटे बच्चे इन आनलाइन क्लासों से बहुत अधिक लाभ नहीं उठा पाते हैं। लेकिन “कुछ प्राप्त करना बिल्कुल ही कुछ प्राप्त ना करने से बेहतर है” को सामने रखकर शैक्षणिक सिलसिले को बंद करने के मुकाबले में आनलाइन क्लासों को जारी रखना जरूरी है क्योंकि इनके जरीये बच्चे कुछ ना कुछ पढ़ लेते हैं और उनका शैक्षिक वर्ष बर्बाद होने से बच जायेगा। शैक्षिक सिलसिला टूट जाने पर उनकी वर्तमान योग्यताएं भी समाप्त हो जायेंगी। और यह भी कि वर्तमान परिस्थिति में इसके अतिरिक्त कोई दूसरा उपाय भी नहीं है। अर्थात विश्वविद्यालयों, कालेजों और स्कूलों में आनलाइन क्लासों के माध्यम से वर्ष को जीरो (zero) होने से बचाने का प्रयास जारी है, परंतु मदरसों में आनलाइन क्लासों का ना तो अभी तक कोई व्यवस्था की गई है और ना ही मदरसों के जिम्मेदारों और शिक्षकों ने इस ओर ध्यान दिया है, हालांकि मदरसों के जिम्मेदारों को वस्तु स्थिति के आलोक में नई तकनीक से लाभ उठाकर इस मैदान में भी घोड़े दौड़ाने चाहियें।
पिछले साल ही स्थिति का अंदाजा लगा कर मैं ने मदरसों के जिम्मेदारों से आनलाइन क्लासों को आरम्भ करने का अनुरोध किया था ताकि बच्चे शिक्षा से जुड़े रहें, परंतु देर से ही सही मगर नदवतुल उलेमा लखनऊ, दारुल उलूम देवबन्द (वक्फ) और कुछ अन्य मदरसों में आनलाइन क्लासों का सिलसिला आरम्भ हो गया था। अन्य मदरसों के जिम्मेदारों को भी इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि बच्चों का शैक्षिक वर्ष खराब ना हो।
मदरसों के जिम्मेदारों की ओर से साधारणत: कहा गया कि अधिकांश बच्चों के पास स्मार्ट फोन उपलब्ध नहीं है, हालांकि विश्व की आबादी से अधिक इस समय मोबाइल नंबर इस्तेमाल में हैं क्योंकि इस समय विश्व में 8 अरब से अधिक मोबाइल नंबर रजिस्ट्रेशन में हैं जबकि विश्व की आबादी अभी 8 अरब से कम है। अर्थात आबादी और मोबाइल का अनुपात से ज्ञात होता है कि बच्चे के जन्म से पहले ही उसका नंबर आवंटित हो जाता है। विश्व में इस समय करीब 4 अरब स्मार्ट फोन हैं जो विश्व की सम्पूर्ण आबादी का 50% से अधिक है। 130 करोड़ आबादी वाले देश “भारत” में करीब 60 करोड़ स्मार्ट फोन हैं। अर्थात बहुत कम घराने ऐसे हैं जिनमें एक भी स्मार्ट फोन उपलब्ध ना हो। दिन ब दिन स्मार्ट फोन का इस्तेमाल बढ़ रहा है और बढ़ते ही रहने की संभावना है। इसलिए यह कहना कि अधिकतर क्षात्रों के पास स्मार्ट फोन की सुविधा उपलब्ध नहीं हैं, जमीनी वास्तविकता से इंकार है। और यदि यह स्वीकार भी कर लिया जाय तो कम से कम जिन बच्चों के पास सुविधाएं उपलब्ध हैं, उनको क्यों वंचित रखा जाये। दूसरी बात कही जाती है कि स्मार्ट फोन से समाज में बिगाड़ फैलता है, मगर सवाल यह है कि मदरसों में आनलाइन क्लासों के आरम्भ नहीं करने से क्या स्मार्ट फोन के गलत इस्तेमाल को रोका जा सकता है? अनुभव यह है कि अब हम नई नस्ल को स्मार्ट फोन के उपयोग से नहीं रोक सकते हैं। आवश्यकता है कि इनको आनलाइन क्लासों में व्यस्त रखकर मोबाइल के गलत इस्तेमालों से रोका जाए।
दुनिया भर के चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि प्राचीन काल से इस बीमारी के अस्तित्व के बावजूद इस बीमारी का कोई निश्चित इलाज नहीं है। भारत सहित विभिन्न देशों में टीके विकसित किए गए हैं, लेकिन टीकाकरण के बावजूद, इस बीमारी के लगने की संभावना रहती हे। डॉक्टरों का कहना है कि यह बीमारी लोट कर बार बार आ सकती है, इसलिए भारत में दूसरी लहर के दौरान ही बीमारी की तीसरी लहर की बात शुरू हो गई है। इससे दूसरा शैक्षणिक वर्ष महामारी की चपेट में आने की संभावना है।
वस्तुतः हमारा यह ईमान व अकीदा है कि यह वबाई मर्ज अल्लाह की मर्जी के बगैर दुनिया से समाप्त नहीं हो सकता है। हम घबड़ाये नहीं और ना ही ना उम्मीद हों, इससे अधिक खतरनाक वबाई मर्ज इस दुनिया में फैले हैं, आखिरकार एक दिन उससे भी निजात मिली, इनशा अल्लाह यह वबाई मर्ज भी एक दिन समाप्त हो जायेगा। मगर दुनिया के दारुल असबाब होने के कारण हमें जमीनी वास्तविकता पर भी गौर व खौज करना चाहिए। इसलिए मैं भारत के सभी बड़े बड़े संस्थानों और मदरसों के जिम्मेदारों से निवेदन करता हूँ कि नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर के विश्वविद्यालयों, कालेजों और स्कूलों की भांति, बल्कि उससे भी अधिक व्यवस्थित तरीके से मदरसों में आनलाइन क्लासों को प्रारंभ किया जाए। निस्संदेह कुछ दुश्वारियां आ सकती हैं मगर मुसलमान दुश्वारियों से घबराता नहीं है बल्कि वह उन्हीं में आसानियों को ढूंढ लेता है। देश के मदरसों में माह शव्वाल के आरम्भ में नये बच्चों के दाखिले और उसके तत्पश्चात शैक्षिक वर्ष शुरू हो जाता है। अब यदि समय की कमी के कारण नये क्षात्रों के दाखिला इम्तिहान की व्यवस्था करना आसान नहीं है तो कम से कम तत्काल शिक्षकों को नई तकनीक का प्रशिक्षण देकर पुराने क्षात्रों की आनलाइन क्लासों को शुरू किया जाये। यह समय की आवश्यकता है। आनलाइन क्लासों के लिए इंटर्नेट पर उपलब्ध मुफ्त प्रोग्रामों का भी सहारा लिया जा सकता है, मगर सुरक्षा के लिए आनलाइन क्लासों के लिए कुछ प्रोग्रामों को खरीद भी सकते हैं, जिसका एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि क्लासें Advertisements (प्रचार सामग्री) से दूर रहेंगी। यदि तत्काल विधिवत आनलाइन क्लासों को शुरू करना मुश्किल है तो कम से कम प्रत्येक क्लास का वाट्सअप ग्रुप बनाया जाए और दैनिक विडियो बना कर वाट्सअप ग्रुप पर अपलोड करदी जाये ताकि क्षात्र अपन अपने मुकाम पर अपनी सुविधा के अनुसार उससे लाभ उठायें। अलहमदुलिल्लाह सभी दरसी किताबें विभिन्न वेबसाइटों पर मुफ्त डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध भी हैं। और यह भी कि मदरसे की वेबसाइट पर इन दरसी किताबों को अपलोड भी कर दिया जाये ताकि क्षात्र घर पर रहकर ही लाभान्वित हो सकें। जो उलेमा हजरात अपनी विडियो नहीं बनाना चाहते हैं तो वह केमेरे का रुख किताब की तरफ करके पढ़ायें। इस प्रकार क्षात्र उस्ताद मोहतरम की आवाज से किताब के सबक को आसानी से समझ सकते हैं। मैं ने भी सम्भल शहर में अवस्थित अपने स्कूल “अल-नूर पब्लिक स्कूल” में इस प्रकार आनलाइन क्लासों का सिलसिला आरम्भ कर रखा है। अलहमदुलिल्लाह अधिकतर बच्चे इन आनलाइन क्लासों से लाभ उठाते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि यह आनलाइन क्लासें वास्तविक क्लास रूम का बदल नहीं हो सकती हैं क्योंकि इसमें बच्चों की तरबीयत नहीं हो पाती है और क्षात्र-शिक्षक का विशेष सम्पर्क स्थापित नहीं होता है, परन्तु इस समय हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इसलिए मैं उलेमाए कराम से निवेदन करता हूँ कि जिस प्रकार चंद वर्षों से उलेमाए कराम ने वा’ज व नसीहत के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेना शुरू कर दिया है उसी प्रकार लाकडाउन जैसे हालात में आनलाइन क्लासों को शुरू किया जाए ताकि क्षात्र किसी हद तक किताबों से जुड़े रहें। जिस तरह तकरीबन तीस वर्षों में शैक्षिक वसायल में बड़ा बदलाव आया है कि तख्ती, बांस के कलम और दवात की जगह अब कापी और बालपेन ने ले ली है, उसी तरह बहुत सम्भव है कि अगले तीस वर्षों में भारी बेगों और किताबों के बजाय लेपटॉप, टेब, मोबाइल, इन्टरनेट और माडर्न क्लास रूम का रिवाज साधारणत: प्रचलित हो जायेगा।