• नवेद शिकोह

आई ज़ज़ीर की झंकार ख़ुदा ख़ैर करे,
ये खनकती हुए तलवार ख़ुदा ख़ैर करे..

पुरानी तलवारों को अब म्यान मे आ जाना चाहिए है। इसमें कोई एक भी नई तलवार नहीं है। इन तलवारों ने लखनऊ के पत्रकारों के लोकतांत्रिक उत्सव यानी उ.प्र.राज्य मुख्यालय संवाददाता समिति के चुनाव का मज़ा किरकिरा कर दिया है। लखनऊ की पत्रकारिता की नई पीढ़ी के जिन चमकते हुए सितारों ने समिति के चुनावों में दिलचस्पी लेना शुरू की थी उन्होंने इस गंदगी से पैर पीछे कर लिए है। मौजूदा वक्त की पत्रकारिता की शान कहे जाने वाले वो जोशीले युवा पत्रकार जो पिछले चुनावों में बहुत जोश और जज्बे के साथ निर्वाचित हुए थे वो समिति की असलियत देखकर निराश हो गए। उनका जोश और जज्बा काफूर हो गया। ये तजुर्बा काफी बुरा रहा। पहली बार चुनाव लड़ने और जीतने के बाद ये युवा पत्रकार समिति को फिजूल समझने लगे हैं।

अभिषेक रंजन ( पायनियर ) अलाउद्दीन ( न्यूज़ 18) और अंकित श्रीवास्तव ( प्राइम न्यूज़ ) .. जैसे बेहतरीन पत्रकार चुनावी भागीदारी से दूर हो गए। ये चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।

गंदी सियासत की खनकती हुई तलवारों के साये में कोई क्यों रहना चाहेगा?

ग़ौर से देखिए, चंद पुराने हाथों मे हीं तलवारें हैं बाकी सब खैरियत है। दो-चार अग्रजों को छोड़ दीजिए तो सबके हाथों में मोहब्बत के फूल हैं, एकता के गुलदस्ते हैं और हर तरफ ठहाकों की गूंज है। कलह और चीत्कार की हसरतें पस्त होना और शांति-सद्भावना कायम रहना बहुत कुछ बयां कर रहा है। नालियां चोक हो रही हैं और नये जोश के साथ पवित्र समुद्र की लहरें अपवित्रता को बहा ले जाएंगी।

अक्सर आपने ये जुमला सुना होगा- “लखनऊ की पत्रकारिता का नया दौर गंदगी से भरा है”।

ये झूठ है। सच ये है कि गंदगी की पुरानी नालियां अब तक पाटी नहीं जा सकीं। तमाशबीनों की भीड़ में दो-चार ही लोग हैं जिसके हाथों में आपसी टकराव, प्रतिद्वंद्विता,नफरत, दोस्ती से दुश्मनी में बदले रिश्तों के प्रतिशोध की तलवारें हैं।

ये झूठ है कि मौजूदा दौर में लखनऊ की पत्रकारिता और पत्रकार राजनीति/चुनाव/ संवाददाता समिति में गंदगी फैली है। सोशल मीडिया और बढ़ते अखबारों/पत्रकारों/प्रेस मान्यताओं ने गंदगी फैलाई है। ये गंदगी बहुत पुरानी है और ये जारी है। गंदी सियासत की ये ज़ंग लगी पुरानी तलवारें हैं जो नये दौर की पत्रकारिता को भी टिटनेस कर देना चाहती हैं।