अब जनता का आंदोलन बन गया है किसानों का मूवमेंट: राकेश टिकैत
श्रीगंगानगर: किसान नेता राकेश टिकैत ने आज राजस्थान में श्रीगंगानगर जिले के पदमपुर कस्बे में आयोजित किसानों की महापंचायत में संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुआ यह संघर्ष अब हर वर्ग के लोगों का संघर्ष है बन गया है। सरकार ऐसे ही 17 और कानून लाने वाली है, जिससे हर वर्ग के लोग प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा कि सरकार से यह लड़ाई लंबी चलेगी। किसानों को मोर्चे मजबूत बनाए रखने होंगे।
बंगाल में भी मोर्चा खोलना होगा
राकेश टिकैत ने कहा कि देश के दूसरे इलाकों में भी मोर्चाबंदी करनी होगी। बंगाल के किसान भी बहुत परेशान हैं। बंगाल में भी मोर्चा खोलना होगा , महापंचायत को मोर्चा के वरिष्ठ सदस्य जोगेंद्रसिंह उगरहां, गुरमीतसिंह चढूनी तथा रघुवीर सिंह आदि किसान नेताओं ने भी संबोधित किया। राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार गलतफहमी में है कि वह लोगों को गुमराह करके आंदोलन को दबा देगी, लेकिन यह अब जनता का आंदोलन बन गया है।
सरकार की नजर खुदरा व्यापार पर
उन्होंने कहा कि सरकार की नजर खुदरा व्यापार पर है। वॉलमार्ट जैसी विदेशी कंपनियां खुदरा व्यापार को निगलने को तैयार बैठी हैं। शहरों में 5-7 मॉल में खुदरा व्यापार सिमट कर रह जाएगा। आने वाले दिनों में कोई दूध भी नहीं बेच सकेगा। दूध पहले कंपनियों को बेचना होगा। कंपनियां फिर मुनाफे के साथ दूध आम लोगों को बेचेंगी। इसी प्रकार बिजली को लेकर भी सरकार एक कानून लाने वाली है। इससे किसान खेतों में अपने पंपिंग सेट भी नहीं चला पाएंगे। लिहाजा यह लड़ाई बहुत लंबी चलेगी।
ट्रैक्टर किसानों का स्टेटस सिंबल
श्री टिकैत ने कहा कि इस आंदोलन से ट्रैक्टर किसानों का स्टेटस सिंबल बन गया है। इस संघर्ष में हल क्रांति भी होगी। खेती में काम आने वाले औजार भी किसान तैयार रखें। जरूरत पड़ी तो यह औजार भी निकालने दिखाने होंगे। किसान नेता ने केंद्र सरकार को सूचित किया कि वह इस आंदोलन को जात-धर्म और सांप्रदायिक रूप देकर दबाने की कतई चेष्टा नहीं करें। इस आंदोलन से देश में एक नए धर्म का सूत्रपात हुआ है। यह धर्म है-किसान धर्म।
चढूनी बोले –खेत बचेंगे तो किसान बचेंगे
संयुक्त मोर्चा के वरिष्ठ सदस्य गुरमीत सिंह चढूनी ने कहा कि खेत बचेंगे तो किसान बचेंगे। सभी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी फसलों का नहीं मिलता है। इसमें लगभग चार लाख करोड़ रुपये का अंतर है। किसान सोचे कि अगर हर फसल में यह चार लाख करोड़ और उनकी जेबों में आए तो न केवल उन्हें आर्थिक संबल मिलेगा बल्कि हर वर्ग की भी आर्थिक स्थिति सुधरेगी। यह चार लाख करोड़ किसानों के जरिए बाजार में आए तो अर्थव्यवस्था का पहिया तेजी से घूमेगा।