पत्रकारों की सियासत ने उन्हें एनेक्सी से निकाल कर सड़क पर ला फेंका!
- नवेद शिकोह
यूपी की राजधानी लखनऊ के जो पत्रकार मुख्यालय (शासन) की खबरें कवर करते हैं उन्हें राज्य मुख्यालय का पत्रकार कहा जाता है। सरकार इन पत्रकारों को राज्य स्तरीय प्रेस मान्यता देती है। वक्त के साथ आबादी बढ़ी और अखबार भी बड़े। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और न्यूज एजेंसियों की बढ़ती रफ्तार ने मीडिया का दायरा बढ़ाया। चालीस वर्ष पहले जहां लखनऊ के करीब चालीस पत्रकारों की मान्यता थी वहीं आज आज इनकी तादाद एक हजार के करीब पंहुचने वाली है।
इन पत्रकारों का रूटीन खबरों का एरिया एनेक्सी/विधानभवन/सचिवालय/लोकभवन.. इत्यादि होता है। स्पेशल खबरों के लिए सोर्सेज भी इन्हें यहां मिलते हैं। फील्ड से खबरों की तलाश में इनका अधिकतर समय शासन/सत्ता के इन ख़ास ठिकाने में गुजरता हैं। थक हारकर ये दम ठहरा लें। बैठ कर आपस में रूटीन खबरों पर बात कर लें। चाय-पानी या गप्पें लड़ाकर थोड़ा रिलेक्स हो जाएं। ऐसे सुविधाओं के लिए एनेक्सी, विधानभवन और लोकभवन में इन्हें मीडिया सेंटर और प्रेस रूम की सुवाधा मिली है।
तकरीबन तीन दशक पूर्व सूचना क्रांति आने से पहले अक्सर एक ही समय में दो अलग-अलग प्रेस कांफ्रेंस हो जाने के कारण पत्रकारों को दिक्कत होती थी। जिसे दूर करने के लिए दशकों पहले लखनऊ के पत्रकारों ने उ.प्र.राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति गठित की। किसी प्रेस कांफ्रेंस का टाइम कॉर्डिनेशन इस समिति के गठन का उद्देश्य था।
वैसे तो इस समिति का कभी रजिस्ट्रेशन तक नहीं हुआ पर इसकी मान्यताएं, परम्पराएं, नैतिकता, पारिवारिक और लोकतांत्रिक सौंदर्य इसकी खूबियां रहीं।
एक समय अवधि के बाद राज्य मुख्यालय के पत्रकार चुनाव करा कर संवाददाता समिति गठित करते हैं। वक्त बदलने के साथ बहुत कुछ बदल गया। पत्रकार बदला तो उसका रसूख और इकबाल भी बलंद नहीं रहा। पत्रकारिता का निज़ाम बदला, पत्रकारों ने अपनी छवि हल्की कर ली तो सत्ता में उनकी हनक और इज्जत भी हल्की हो गई। जिस संवाददाता समिति का चुनाव पारिवारिक उत्सव जैसा होता था धीरे-धीरे इसका स्तर गिरता गया। अब ये चुनाव टैम्पों महासंघ के चुनाव से भी गया गुजरा हो गया।
ऐसे में कोई भी सरकार इन्हें पहले जैसी इज्जत कैसे देगी ? ज्यादातर सियासी पत्रकारों को सियासत के सारे अवगुण ही नहीं सब कुछ आता है बस खबर लिखना नहींं आती। प्रतिस्पर्धा और अनुशासनहीनता में चुनाव-चुनाव के खेल में संवाददाता समिति की खूबसूरत सुसंस्कृति की विरासत की छवि धूमिल करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी जा रही है।
आरोप हैं कि वो तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर निवर्तमान हो चुकी समिति के अध्यक्ष चुनाव नहीं करवाना चाहते। संवाददाता समिति के अध्यक्ष का कहना है का समिति का पूरा अस्तित्व परम्पराओं पर आधारित है। इसका ना कोई बायलॉज है और ना कोई रजिस्ट्रेशन। एनेक्सी लाला बहादुर शास्त्री भवन समिति का एड्रेस माना जाता है। परंपरा, एकता, एकजुटता, नैतिकता की विरासत के साथ संवाददाता समिति का अस्तित्व जुड़ा है। घरेलू लोकतांत्रिक उत्सव की तरह संवाददाता समिति का चुनाव राज्य मुख्यालय के पत्रकारों के कवरेज स्थल एनेक्सी/विधानसभा में परंपरागत ढंग से होता रहा है। इस अति विशिष्ट स्थानों में चुनाव के लिए सरकार से सहयोग और अनुमति ली जाती है। इस बार भी आला अधिकारियों से अनुमति मांगी जा रही है किंतु कोविड प्रोटोकॉल के तहत विलंब हो रहा है। समिति के अध्यक्ष का कहना है कि चुनाव स्थल की अनुमति के लिए समिति ने प्रतिष्ठित वरिष्ठ पत्रकारों को आलाधिकारियों से वार्ता के लिए अधिकृत कर दिया है।
विरोधी ख़ेमा इन बयानों को टाल-मटोल और लोकतंत्र की हत्या बता रहा है। इन लोगों ने अपना अलग चुनाव करने के लिए दूसरी बार चुनाव संचालन कमेटी गठित कर दी है।
चुनाव के उम्मीदवारों ने पत्रकारों के हित में बड़े-बड़े वादे भी करना शुरु कर दिए है। ये भी कहा जा रहा है कि एनेक्सी मीडिया सेंटर अथवा/विधानभवन प्रेस रूम में चुनाव की अनुमति नहीं मिली तो हम बाहर कहीं भी चुनाव कर लेंगे।
प्रदेश के पत्रकारों के हित में सरकार से काम करवाने के बड़े-बड़े दावे करने वाले एक प्रत्याशी से एक पत्रकार ने व्यंग्य करते हुए कहा-
इश्क और रोमांस की बातें,
ये सब हैं बेकार की बातें।
पहले मलिहाबाद तो जाओ,
फिर कर लेना फ्रांस की बातें…
प्रत्याशी बोला – क्या मतलब !
पत्रकार ने व्याख्या करते हुए कहा-
जिन ठिकानों में दशकों से समिति के चुनाव सम्पन्न होने की परंपरा हैं यहां के मीडिया सेंटर का ताला चपरासी से खुलवा नहीं पा रहे हो और कहते हो कि जिता दो तो प्रदेश भर के पत्रकारों के लिए सरकार से बड़े-बड़े काम करवा देंगे !!!
यही हाल है संवाददाता समिति, उसके पदाधिकारियों और अध्यक्ष हेमंत तिवारी का है। एनेक्सी/विधानसभा में चुनाव सम्पन्न कराने की अनुमति हेतु आलाधिकारियों से वार्ता के लिए एक महीने पहले संवाददाता समिति के पदाधिकारियों की एक कमेटी गठित हुई। नतीजा जीरो रहा, चुनाव तो दूर चुनाव की रूपरेखा तय करने के लिए आम सभा के लिए भी मीडिया सेंटर नहीं मिला। पत्रकार सड़क पर खड़े रहे। तिवारी जी ने चुनाव की परमीशन की वार्ता के लिए एक बार फिर कमेटी बना डाली। ये देखकर विरोधी गुट ने उनसे भी बड़ी पुनः कमेटी बना दी। कमेटी पर कमेटी..कमेटी पर कमेटी…
पर चुनाव कब होगा ?
हो सकता है कि अपने पारंपरिक स्थानों के बजाय किसी नये स्थान पर विरोधी गुट चुनाव की तारीखों का एलान कर दे और वरिष्ठ पत्रकार प्रभात त्रिपाठी की चुनाव कराने की मुहिम रंग लाए। लेकिन त्रिपाठी जी को शायद ये सपना रास ना आये। इमोशनल एंड एंग्री मैन कहे जाने वाले प्रभात त्रिपाठी चुनाव कराये जाने की लड़ाई के कमांडर जरूर रहे हैं लेकिन वो नहीं चाहते कि बंटवारे की कीमत पर चुनाव हों। दो गुट बनें, बंटवारा..विभाजन हो।आपस में कटुता पैदा हों और सरहदें खिचें।
एनेक्सी मीडिया सेंटर से सड़क पर आ चुकी पत्रकारों की सियासत और बंटवारे का सिलसिला थमे और शांति, सौहार्द और एकता स्थापित हो।इसके लिए प्रभात त्रिपाठी अब एकता कमेटी गठित करने जा रहे हैं।
हालात ठीक नहीं हैं लेकिन उम्मीद पर दुनिया क़ायम है।
एकता के प्रभात में आशा की किरण का इंतज़ार है।