हज़रत फातिमा ज़ेहरा की सीरत कयामत तक के लिए कामिल नमूना है : मौलाना कल्बे जवाद
इमामबाड़ा सिब्तैनाबाद में हज़रत फातिमा की शहादत के अवसर पर दो दिवसीय मजालिस का आयोजन
लखनऊ: पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा स0अ0 की बेटी हज़रत फातिमा ज़ेहरा की शहादत के मौके पर कार्यालय आयंतुल्लाह सै0 अली ख़ामेनाई, दिल्ली की तरफ से इमामबाडा सिब्तैनाबाद हज़रतगंज में दो रोज़ा अज़ाए फातिमिया का आयोजन किया गया। पहली मजलिस को हुज्जत-उल-इस्लाम मौलाना सैयद हमीदुल हसन साहब और आख़िरी मजलिस को हुज्जत-उल-इस्लाम मौलाना सैयद कल्बे जवाद नकवी साहब ने संबोधित किया।
मजलिस को संबोधित करते हुए मजलिसे उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना कल्बे जवाद नकवी ने कहा कि इस्लाम मे इबादत के तसव्वुर और अन्य धर्मों मे इबादत के तसव्वुर के बीच मुख्य अंतर यह है कि अन्य धर्मों में इबादत के लिए अकेलेपन और अद्वैतवाद की आवश्यकता होती है, इसीलिए उनके रूहानी पेशवा जंगलों,पहाड़ों और एकांत में, दुनिया से कट जाते हैं, जहाँ सामूहिक सामाजिक व्यवस्था की कोई अवधारणा नहीं है, जबकि इस्लाम में इबादत के लिए एक सामूहिक सामाजिक व्यवस्था है। मिसाल के तौर पर नमाज़ को एकेले पढने का वह सवाब नही है जो जमाअत के साथ पढने का सवाब है। इसी तरह, जुमा की नमाज़ का एक मकसद यह है कि मुसलमान अपना भव्य इज्तेमा आयोजित कर सकें। हज इस्लाम की महान इबादतोें में शामिल है जिसका एक उद्देश्य मुसलमानों की सामूहिक सामाजिक व्यवस्था को विश्व स्तर पर प्रस्तुत करना है। मौलाना ने कहा कि इस्लाम मे इबादत के हर कार्य में सामूहिक सामाजिक व्यवस्था को ध्यान में रखा जाता है। नमाज़ एक अज़ीम इबादत है लेकिन लोगों की सेवा भी इबादत से कम नही। यदि कोई व्यक्ति डूब रहा है, तो इस्ला कहता है कि नमाज़ छोड़ के डूबने वाले व्यक्ति को बचाना इबादत है,चाहे डूबने वाला मुस्लिम हो या किसी अन्य धर्म और अकीदे का अनुयायी हो। मौलाना ने कहा कि दुनिया के सभी लीडर अपने लक्ष्यों में इस लिये असफल होते हैं क्योंकि वह जिस काम का मुतालेबा करते है उसपर खुद अमल नही करते। कम्युनिज़म जैसी विचारधारा जिसमें समाज के लिये बहुत आकर्षण था, यह विचारधारा भी विफल हो गई क्योंकि जिन्होंने नारा दिया था कि समानता आवश्यक है वह खुद उस नारे पर अमल नही कर रहे थे। लेकिन जिन रहनुमाओं को अल्लाह ने मानवता के मार्गदर्शन के लिए भेजा है, उन्होंने जो कहा उसपर पहले खुद अमल किया और बाद में दूसरों से अमल की मांग की। मौलाना ने कहा कि अल्लाह ने मर्दांे में 13 मासूम रहबरों को इंसानियत की हिदायत के लिए भेजा है लेकिन हज़रत फातिमा ज़ेहरा महिलाओं के लिए एकमात्र आदर्श उदाहरण हैं कि उनके बाद किसी अन्य मासूमा की ज़रूरत नहीं पडी। आपका पुरा जीवन हुज्जत है और कामिल नमूना है। मजलिस के आखि़र में मौलाना ने बीबी फातिमा ज़ेहरा स0अ0 की शहादत को बयान किया।
इससे पहले, कारी मासूम मेहदी ने पवित्र कुरान की तिलावत से मजलिस का आग़ाज़ किया। उसके बाद, जनाब कल्बे अब्बास,जनाब अली मेहदी, जनाब शाहिद कमाल और जनाब मोहम्मद हसनैन ने अपना कलाम पेश किया। अंत में, अंजुमन-ए-जीनते अब्बास लाल बाग, लखनऊ ने नूहा ख़ानी और सीना ज़नी की। मजलिस का संचालन आदिल फराज नकवी ने किय। मजलिस में मौलाना अकील अब्बास,मौलाना मुहम्मद हुसेन,मौलाना आसिम बाकिरी,मौलाना ज़फरून नकी,जनाब अमान अब्बास एडीटर सहाफत,जनाब इम्तियाज आलम और अन्य हस्तियों ने भाग लिया।